विश्व कम्युनिस्ट आन्दोलन : इतिहास, समस्याएं व चुनौतियां

How Collective Childcare Liberated Women

This division of labor in society oppresses women. It keeps many women isolated in the home where housework and childcare numb the mind and exhaust the body. And it puts a lot of restrictions on what women can do with their lives and how much they can participate in the revolutionary struggle. A woman who has to spend a large part of her life raising and taking care of children isn’t free to fully contribute to society. And until this oppressive division of labor is gotten rid of, woman cannot be liberated. read more

माओकालीन चीन में मार्क्सवाद / जार्ज थामसन

माओ पूंजीवाद के समर्थकों और मार्क्सवाद के संशोधनकर्ताओं के विरुद्ध, जिस बात की जोरदार ढंग से हिमायत करते हैं वह मानवतावाद की भूमिका ही है जो सामाजिक विकास में अदा की जानी है – लेकिन यह उदार मानवतावाद नहीं है जो यह मानकर चलता है कि हरेक सवाल के दो पक्ष होते हैं, बल्कि यह क्रान्तिकारी मानवतवावाद है जो उत्पीड़ितों के पक्ष में खड़ा होकर, हमारे समय की महान ऐतिहासिक घटनाओं का स्वरूप निर्धारित कर रहा है। जहां कुछ लोग इस भ्रम में हैं कि गरीब देशों के आर्थिक विकास के लिए बाहर से भौतिक सहायता जरूरी है, वहीं माओ हमें बताते हैं कि देश की सम्पदा तो उसकी जनता होती है जो, एक बार साम्राज्यवादी प्रभुत्व के चंगुल से मुक्ति पा लेने के बाद, स्वयं अपनी गरीबी का अन्त कर सकती है। read more

कैसे पहुंची पेरिस कम्यून की चिंगारी चियापास की पहाड़ियों में

कम्यून के लाल झण्डे की तरह लाल कमरबन्द और लाल स्कार्फ़ पहने कम्यून की स्त्रियां बुर्जुआ हलकों में कुख्यात थीं। दुश्मन सैनिकों की बढ़त रोकने के लिए केरोसिन से लैस उनके दस्ते जगह-जगह आग लगा देते थे। जब वर्साय की सेनाओं ने पेरिस पर फि़र कब्जा कर लिया तो बड़ी तादाद में स्त्रियों को फ़ायरिंग स्क्वाड के सामने भेजा गया। शहरी गरीब वर्ग की कोई भी स्त्री टोकरी या बोतल लिए हुए दिख गयी तो उसे ‘फ़ूंक-ताप दस्ते’ की सदस्य मानकर फ़ौरन गोली मार दी जाती थी। read more

समाजवाद की समस्याएँ, पूँजीवादी पुनर्स्थापना और महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति

दुनिया के पैमाने पर सर्वहारा शक्तियाँ एक बार फिर बुनियादी विचारधारात्मक सवालों के रूबरू खड़ी है। अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करणों की – आर्थिक नवउपनिवेशवाद के दौर की नयी सर्वहारा क्रान्तियों की प्रगति और सफलता की बुनियादी गारण्टी इन प्रश्नों के समाधान पर ही निर्भर करती हैं कि: · सोवियत संघ, पूर्वी यूरोप के देशों और चीन आदि के देशों में पूँजीवाद की पुनर्स्थापना क्यों हुई और कब हुई · समाजवादी प्रयोगों की ऐतिहासिक उपलब्धियाँ, असफलताएँ, ग़लतियाँ और वस्तुगत सीमाएँ क्या थीं · समाजवादी समाज की प्रकृति एवं स्वरूप कैसा होता है · यदि समाजवाद वर्ग समाज से वर्गविहीन समाज के बीच का एक लम्बा संक्रमणकाल है और इस लम्बी अवधि के दौरान वर्ग (एवं ज़ाहिरा तौघ्र पर वर्ग-संघर्ष भी) मौजूद रहते हैं तो वे कौन-कौन से वर्ग होते हैं और वर्ग सम्बन्धों की प्रकृति क्या होती है · इस संक्रमणशील वर्ग समाज में राज्य की प्रकृति क्या होती है, वह किस वर्ग के हाथों में होता है यानी समाजवादी समाज में राज्य और क्रान्ति का प्रश्न किस रूप में मौजूद होता है और किस तरह से हल किया जाता है · सर्वहारा अधिनायकत्व के बारे में मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ के विचार क्या हैं, इस अवधारणा का क्रमशः विकास किस रूप मे हुआ तथा इसके व्यवहार के ऐतिहासिक अनुभव हमें क्या बताते हैं · समाजवादी समाज में कृषि और उद्योग के क्षेत्र में और समग्र रूप में उत्पादन सम्बन्धों की प्रकृति क्या होती है, उनमें बाज़ार की और बुर्जुआ अधिकारों की क्या स्थिति होती है, उनमें माल-उत्पादन की अर्थव्यवस्था किन रूपों में मौजूद रहती है, समाजवादी समाज की राजनीतिक-सांस्कृतिक अधिरचना की प्रकृति और गतिकी (डायनामिक्स) क्या होती है तथा सतत परिवर्तनशील आर्थिक मूलाधार को वह किस तरह प्रभावित करती है और उससे किन रूपों में प्रभावित होती है… आदि-आदि। read more

अनश्वर हैं सर्वहारा संघर्षों की अग्निशिखाएँ

सर्वहारा क्रान्ति की फ़िलहाली हार, पूँजीवादी पुनर्स्थापना, विपर्यय और गतिरोध के वर्तमान विश्व ऐतिहासिक दौर का विश्लेषण करते हुए इसमें विश्व सर्वहारा आन्दोलन की इतिहास-विकास यात्रा पर एक विहंगम दृष्टि डाली गयी है और इसके समाहार के आधार पर क्रान्तियों के भविष्य के बारे में कुछ सम्भावनाएँ, कुछ विचार प्रस्तुत किये गये हैं। इसे लिखे जाने के समय से दुनिया में बहुत से बदलाव आ चुके हैं लेकिन इसमें सर्वहारा की मुक्ति के लिए विश्व-ऐतिहासिक वर्ग महासमर के पहले चक्र का जो समाहार प्रस्तुत किया गया है और जो भविष्यवाणियाँ की गयी हैं, वे मूलतः आज भी सही हैं। वस्तुतः, आज दुनिया की परिस्थितियाँ विश्व ऐतिहासिक वर्ग महासमर के दूसरे चक्र के बारे में इसके कथनों को सही साबित कर रही हैं। हम समझते हैं कि सर्वहारा क्रान्तिकारियों और वामपन्थी बुद्धिजीवियों के साथ ही उन सबके लिए यह उल्लेखनीय और विचारोत्तेजक सामग्री है जो मार्क्सवादी विज्ञान के विकास के बारे में जानने में दिलचस्पी रखते हैं। ।

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पेरिस कम्यून की महान शिक्षाएं

पेरिस कम्यून में जनसमुदाय वास्तविक स्वामी था। कम्यून जबतक अस्तित्व में था, जनसमुदाय व्यापक पैमाने पर संगठित था और सभी अहम राजकीय मामलों पर लोग अपने-अपने संगठनों में विचार-विमर्श करते थे। प्रतिदिन क्लब-मीटिंगों में लगभग 20,000 ऐक्टिविस्ट हिस्सा लेते थे जहां वे विभिन्न छोटे-बड़े सामाजिक और राजनीतिक मसलों पर अपने प्रस्ताव या आलोचनात्मक विचार रखते थे। वे क्रान्तिकारी समाचार-पत्रें और पत्रिकाओं में लेख और पत्र लिखकर भी अपनी आकांक्षाओं और मांगों को अभिव्यक्त करते थे। जनसमुदाय का यह क्रान्तिकारी उत्साह और यह पहलकदमी कम्यून की शक्ति का स्रोत थी।

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