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दिशा सन्धान–4, जनवरी-मार्च 2017

दिशा सन्धान–4, जनवरी-मार्च 2017

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सम्‍पादकीय

‘रुग्ण लक्षणों’ का यह समय और हमारे कार्यभार

भारतीय कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन का इतिहास, समस्‍याएं व चुनौतियां

नक्सलबाड़ी और उत्तरवर्ती दशक : एक सिंहावलोकन (तीसरी किस्त) : दीपायन बोस

माकपा के भीतर फ़ासीवाद पर बहस – चुनावी जोड़-जुगाड़ के लिए सामाजिक जनवाद की बेशर्म क़वायद : आनन्‍द सिंह

विश्‍व कम्‍युनिस्‍ट आन्‍दोलन का इतिहास, समस्‍याएं व चुनौतियां

सोवियत संघ में समाजवादी प्रयोगों के अनुभव : इतिहास और सिद्धान्त की समस्याएँ (चौथी किस्त) : अभिनव सिन्‍हा

फासीवाद / दक्षिणपंथ

मोदी सरकार द्वारा नोटबन्दी का राजनीतिक अर्थशास्त्र : शिशिर

फ़ि‍लीपींस में दुतेर्ते परिघटना और उसके निहितार्थ : तुहिन दास

साम्राज्‍यवाद

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव – डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के निहितार्थ : आनन्‍द सिंह

सामयिक

मराठा मूक मोर्चों के पीछे मौजूद सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिकी : एक मूल्यांकन : शिवार्थ

आपकी बात

पाठकों के पत्र : दिशा सन्धान – 4, जनवरी-मार्च 2017

 

पाठकों के पत्र : दिशा सन्धान – 4, जनवरी-मार्च 2017

आपकी पत्रिका में नक्सलबाड़ी के इतिहास पर दोनों किश्तें मैं पढ़ चुका हूँ। इस अंक में मोदी की जीत पर रवि सिन्हा के लेख के बहाने फासीवाद विरोधी आन्दोलन पर की गयी विस्तृत चर्चा के अधिकांश बिन्दुओं से मैं सहमत हूँ। सही वैज्ञानिक समझ के बग़ैर फासीवाद से की गयी तमाम लड़ाइयों का हश्र हम पहले देख चुके हैं। आईएस व पश्चिम एशिया के संकट और कश्मीर पर शामिल आलेख भी बहुत तथ्यपूर्ण और विचारोत्तेजक हैं। यूनान में सीरिज़ा का विश्लेषण भी बिल्कुल कन्विंसिंग है, हालाँकि मेरे कई वाम मित्र उसके प्रशंसक हैं। read more

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव – डोनाल्ड ट्रम्प की जीत के निहितार्थ

ट्रम्प एक ऐसे समय अमेरिका के राष्ट्रपति का पद सँभालने जा रहा है जब विश्व पूँजीवाद अपने अन्तकारी संकट से बिलबिला रहा है। ट्रम्प की नीतियों में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस संकट से छुटकारा दिला सकने में सक्षम हो। उस पर से तुर्रा यह कि अमेरिका में एक नयी मन्दी की भी सम्भावनाएँ जतायी जा रही हैं। ऐेसे में ट्रम्प जैसे धूर-दक्षिणपन्थी व्यक्ति का अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर होने से नस्लीय नफ़रत व मुस्लिम-विरोधी दुष्प्रचार को बढ़ावा दिया जाना तय है। मन्दी की मार झेल रहा अमेरिका का पूँजीपति वर्ग ट्रम्प के ज़रि‍ये दुनिया के विभिन्न हिस्सों को नये युद्धों की ओर झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा ताकि उत्पादक शक्तियों को तबाह कर पूँजी के मुनाफ़़े की नयी सम्भावनाओं के द्वार खुल सकें। read more

मराठा मूक मोर्चों के पीछे मौजूद सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिकी : एक मूल्यांकन

नीचे के तीन वर्गों का गुस्सा ग़रीबी, बेरोज़गारी और असमानता के ख़ि‍लाफ़ लम्बे समय से संचित हो रहा है। इस गुस्से का निशाना मराठा जातियों की नुमाइन्दगी करने वाली प्रमुख पार्टियाँ बन सकती हैं, जो कि वास्तव में मराठों के बीच मौजूद अतिधनाढ्य वर्गों की नुमाइन्दगी करता है। यह वर्ग अन्तरविरोध अपने आपको इस रूप में अभिव्यक्त करने की सम्भावना-सम्पन्नता रखता है। लेकिन यह सम्भावना-सम्पन्नता स्वत: एक यथार्थ में तब्दील हो, इसकी गुंजाइश कम है। ग़रीब मेहनतकश मराठा आबादी में भी जातिगत पूर्वाग्रह गहराई से जड़ जमाये हुए हैं। ब्राह्मणवादी वर्चस्ववाद की सोच उनमें भी अलग-अलग मात्रा में मौजूद है। ऐसे में, मराठों के बीच मौजूद जो शासक वर्ग है और उसकी नुमाइन्दगी करने वाली मराठा पहचान की राजनीति करने वाली बुर्जुआ पार्टियाँ मराठा जातियों के व्यापक मेहनतकश वर्ग के वर्गीय गुस्से को एक जातिगत स्वरूप दे सकती हैं और देती रही हैं। read more

फ़ि‍लीपींस में दुतेर्ते परिघटना और उसके निहितार्थ

नवउदारवादी नीतियों को लागू करने के लिए जिस निरंकुशता की ज़रूरत होती है वह दुतेर्ते में कूट-कूट कर भरी हुई है। उसकी कोशिशों के नतीजे के रूप में फि़लीपींस में भले ही विदेशी पूँजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा, लेकिन उसका फ़ायदा वहाँ के रईसों को ही होने वाला है और फि़लीपींस की आम मेहनतकश जनता की ज़िन्दगी की मुश्किलें बरक़रार रहेंगी क्योंकि नवउदारवादी नीतियाँ रोज़गारविहीन विकास ही दे सकती हैं, जिसके फलस्वरूप असमानता की खाई का चौड़ा होना और जारी रहेगा। । हाँ यह ज़रूर है कि फि़लीपींस के इतिहास में पहली बार अमेरिकी साम्राज्यवादियों पर पूर्ण निर्भरता की बजाय फि़लीपींस के भू-सामरिक स्थिति का लाभ उठाकर वह अमेरिका और चीन दोनों से मोलतोल करने की दिशा में आगे बढ़ेगा। देखना यह है कि अमेरिका में ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में आए इस बड़े बदलाव और से इस इलाक़े पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इतना तो तय है कि दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी व चीनी साम्राज्यवादियों के बीच जारी प्रतिस्पर्द्धा और तेज़ होगी जिससे वहाँ तनाव व अस्थिरता का माहौल भी पैदा होगा जिसका दुष्परिणाम फि़लीपींस की आम आबादी को ही झेलना होगा। read more

मोदी सरकार द्वारा नोटबन्दी का राजनीतिक अर्थशास्त्र

नोटबन्दी के बाद से शहरों में मध्यवर्ग का वह हिस्सा जो क्रेडिट कार्ड आदि रखता है, मगर रोज़मर्रा की ज़रूरत की तमाम चीज़ें सामान्य परचून की दुकानों से ख़रीदता था, वह भी अब इन सामानों के लिए बड़ी खुदरा व्यापार कम्पनियों की दुकानों जैसे रिलायंस रीटेल, नाइन-इलेवेन, बिग बाज़ार, फे़यर प्राइस आदि से ख़रीद रहा है। इससे इन कम्पनियों को भारी फ़ायदा पहुँचा है क्योंकि प‍हले भी इनके पास खाते-पीते मध्य वर्ग के ग्राहक ही आते थे, और अब उनका कहीं ज़्यादा बड़ा हिस्सा इन दुकानों से ख़रीदारी कर रहा है जिन पर कार्ड से भुगतान हो सकता है। वहीं दूसरी ओर कार्ड से भुगतान यदि बाध्यता हो तो आप छोटी ख़रीद नहीं कर सकते। ऐसे में, लोग अपनी ज़रूरत से ज़्यादा सामान भी ख़रीद रहे हैं। read more