उत्तर-मार्क्सवाद के ‘कम्युनिज़्म’ : उग्रपरिवर्तन के नाम पर परिवर्तन की हर परियोजना को तिलांजलि देने की सैद्धान्तिकी
उत्तर-मार्क्सवाद के अलग-अलग ‘शेड्स’ के ‘सिद्धान्तकारों’ की भाँति-भाँति की सैद्धान्तिकियों का मक़सद मार्क्सवाद की क्रान्तिकारी अर्न्तवस्तु पर हमला करना है। सही मायनों में कहें, तो उत्तर-आधुनिकतावाद के प्रत्यक्ष हमलों के चुक जाने के बाद उत्तर-आधुनिकतावाद का विरोध करने की नौटंकी करते हुए, इन तमाम सट्टेबाज़ उत्तर-मार्क्सवादी दार्शनिकों के धुरी-विहीन चिन्तन और दार्शनिक ख़ानाबदोशी का वास्तविक निशाना एक बार फिर मार्क्सवाद ही है। इनके शब्द अलग हैं; उत्तर-आधुनिकतावाद जिस बेशर्मी के साथ पूँजीवाद की अन्तिम विजय, कोई विकल्प न होने, पहचान की राजनीति के समर्थन, आदि की बात करता था, अब वैसा करना असम्भव है और किसी के लिए ऐसा करना अपना मज़ाक उड़वाने जैसा होगा। इसलिए इन नये दार्शनिकों ने प्रत्यक्ष तौर पर पूँजीवाद-विरोध की भाव-भंगिमा अपनायी है और पूँजीवाद की ये लोग एक ”नये क़िस्म की आलोचना” करते हैं। आज के ज़माने में पूँजीवाद के ख़िलाफ़ आम जनता सड़कों पर उतर रही है। यह 1990 का दौर नहीं है जब दुनिया भर में पस्ती और निराशा छायी हुई थी। उस समय उत्तर-आधुनिकतावाद नंगे तौर पर ‘अन्त’ की घोषणाएँ कर सकता था। अब कोई भी विचारधारा जो ऐसा प्रयास करेगी, उसके हश्र का अनुमान लगाया जा सकता है। इसलिए पूँजीवादी बौद्धिक तन्त्र ने अपनी सहज गति से नये क़िस्म के ”दार्शनिकों” को पैदा किया है जिसमें से किसी को ‘मोस्ट एण्टरटेनिंग थिंकर’, ‘ग्रेटेस्ट लिविंग थिंकर’ आदि कहा जा रहा है तो किसी को ‘मोस्ट इनोवेटिव थिंकर ऑफ़ जेनरेशन’ और पता नहीं क्या-क्या कहा जा रहा है। read more