बिटकॉइन : पूँजीवादी संकट के भँवर में एक नया बुलबुला

बिटकॉइन : पूँजीवादी संकट के भँवर में एक नया बुलबुला

 

  • उत्कर्ष

 

”क्या आप चन्द दिनों में करोड़पति बनना चाहते हैं? क्या आप मर्सिडीज़ खरीदने का सपना देखते हैं? अगर हाँ, तो बिटकॉइन में निवेश करें।” – यह कोई अतिशयोक्ति‍ नहीं है। इस तरह के विज्ञापन इन दिनों इण्टरनेट पर बढ़ते जा रहे हैं। अगर बिटकॉइन के मूल्य में बढ़ोतरी का ग्राफ़ देखा जाये तो यह वाक़ई मुमकिन लगता है। वर्ष 2017 की शुरुआत में एक बिटकॉइन का मूल्य 1000 अमेरिकी डॉलर से भी कम था, लेकिन यह लेख लिखने तक यह बढ़कर 15000 डॉलर से ऊपर जा चुका था। 6 दिसम्बर को इसका मूल्य 24 घण्टे में 13000 डॉलर से बढ़कर 17000 तक पहुँच गया था, हालाँकि 22 दिसम्बर को इसका मूल्य 20000 डॉलर से एकाएक नीचे गिरकर 13000 डॉलर से भी नीचे जा पहुँचा। जिन लोगों ने 2017 की शुरुआत में या उससे पहले बिटकॉइन में निवेश किया होगा उनके लिए उपरोक्त विज्ञापन निश्चय ही अतिशयोक्ति नहीं होगा। मौक़े का फ़ायदा उठाकर बिटकॉइन के मूल्य को लेकर सट्टेबाज़ी भी धड़ल्ले से हो रही है। ये सबकुछ संकट के भँवरजाल में फँसी विश्व पूँजीवादी व्यवस्था में एक नये बुलबुले के फूलने की ओर साफ़ इशारा कर रहा है जो कब फूटेगा यह बताना तो मुश्किल है लेकिन इतना तय है कि यह फूटेगा और अपने साथ और बड़ी तबाही लायेगा। इसीलिए दुनिया के तमाम देशों के केन्द्रीय बैंक और पूँजीवादी थिंकटैंक सँभलकर निवेश करने की हिदायतें दे रहे हैं।

क्या है बिटकॉइन?

बिटकॉइन एक डिजिटल मुद्रा (करेंसी) है जिसे क्रिप्टोग्राफ़ी की तकनीक के ज़रिये सुरक्षित बनाया जाता है। इसलिए इसे क्रिप्टोकरेंसी कहते हैं। इसे ‘इण्टरनेट का कैश’ भी कहा जा रहा है। बिटकॉइन के अति‍रिक्त कई अन्य क्रिप्टोकरेंसी भी इण्टरनेट पर उपलब्‍ध हैं, मसलन इथिरियम, लाइटकॉइन, रिपल और मोनेरो। बिटकॉइन की खोज 2008 में एक रहस्यमय व्यक्ति ने की थी जो अपना नाम सातोशी नाकामोतो बताता है, हालाँकि अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि वह व्यक्ति कौन है। बिटकॉइन की विशेषता यह है कि यह दुनिया के किसी भी देश या किसी भी संस्था द्वारा विनियमित नहीं होती। यह एक विकेन्द्रीकृत मुद्रा है जो किसी केन्द्रीय संस्था या बैंक द्वारा नहीं बल्कि ब्लॉकचेन नामक तकनीक की बदौलत कम्प्यूटर नेटवर्क के ज़रिये संचालित होती है।

आधुनिक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रा का लेनदेन प्राय: बैंकों या अन्य ‘थर्ड पार्टी’ के ज़रिये होता है जिसमें बैंक अपने सभी खाताधारकों के बही-खातों का प्रबन्धन करते हैं। चूँकि बैंक सरकार द्वारा विनियमित किये जाते हैं इसलिए बैंकों के ज़रिये मुद्रा का लेनदेन करने की इस प्रणाली में लोगों का विश्वास बना रहता है। ब्लॉकचेन की तकनीक ने यह मुमकिन बनाया है कि बिना किसी बैंक या ‘थर्ड पार्टी’ के मुद्रा का लेनदेन किया जा सकता है। इस प्रकार बिना किसी सांस्थानिक हस्तक्षेप के ज़रिये लेनदेन किये जा सकते हैं और समय व धन दोनों की बचत भी होती है। इस तकनीक में बही-खाते किसी केन्द्रीय संस्था के पास नहीं रहते बल्कि इस नये माध्यम से मुद्रा का लेनदेन करने वाले सभी लोगों के पास उपलब्ध होते हैं। इस क़ि‍स्म का ऑनलाइन लेनदेन करने वाले सभी लोग इण्टरनेट के माध्यम से एक कम्प्यूटर नेटवर्क से जुड़े होते हैं जिसे पियर-टू-पियर नेटवर्क कहते हैं। इस प्रक्रिया से होने वाले लेनदेन को सुरक्षित बनाने के लिए ‘डिजिटल सिग्नेचर’ और क्रिप्टोग्राफ़ी की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे लेनदेनों के सत्यापन की प्रक्रिया ‘बिटकॉइन माइनिंग’ का अंग है जो एक विशेष कुशलता की माँग करती है। इस कुशलता से लैस विशेषज्ञों को ‘बिटकॉइन माइनर्स’ कहते हैं। बिटकॉइन नेटवर्क में जब भी कोई लेनदेन होता है तो नेटवर्क में उपस्थित सभी ‘माइनर्स’ को अधिसूचना भेजी जाती है। जो ‘माइनर’ लेनदेन का सत्यापन सबसे पहले करता है उसके खाते में ए‍क निश्चित मात्रा में (इस समय 25) बिटकॉइन चले जाते हैं। इस प्रकार ‘माइनर्स’ न सिर्फ़ बिटकॉइन का सत्यापन करते हैं, बल्कि वे उनका निर्माण भी करते हैं। लेनदेन का सत्यापन करने वाले ‘माइनर्स’ क्रिप्‍टोग्राफ़ी की तकनीक में सिद्धहस्त होते हैं। बिटकॉइन नेटवर्क में होने वाले कई लेनदेनों को मिलाकर एक ब्लॉक बनता है। ये ब्लॉक एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, इसी वजह से इस तकनीक को ब्लॉकचेन कहते हैं। हर ब्लॉक पर अपने पिछले ब्लॉक की पहचान दर्ज होती है और इस प्रकार सभी ब्लॉक एक श्रृंखला में जुड़े होते हैं। ब्लॉकचेन की इस तकनीक को हैक करना इसलिए मुश्किल है क्योंकि हैकर को सिर्फ़ एक ब्लॉक में नहीं बल्कि बिटकॉइन की शुरुआत से लेकर अबतक के सभी ब्लॉकों में छेड़छाड़ करनी होगी जोकि लगभग असम्भव है।

बिटकॉइन के मूल्य में उतार-चढ़ाव की वजह

हाल के दिनों में बिटकॉइन के मूल्य में जो उछाल देखने में आ रहा है उसका मुख्य कारण इसके भविष्य को लेकर होने वाली अटकलबाज़ी और अफ़वाहों का फैलना है। इण्टरनेट पर भाँति-भाँति के प्रलोभन देकर लोगों को उकसाया जा रहा है कि वे बिटकॉइन में निवेश करें। चूँकि बिटकॉइन की आपूर्ति कम्प्यूटर प्रोग्राम से होने की वजह से सीमित है, इसलिए इस क़ि‍स्म की अटकलबाज़ी और अफ़वाहों से कभी बिटकॉइन का मूल्य आसमान छूने लगते है तो कभी उसका मूल्य धड़ाम से नीचे गिर जाता है। अटकलबाज़ी के इस माहौल में दलालों और सट्टेबाज़ों की चाँदी हो गयी है। मुनाफ़े की गिरती दर के संकट से जूझ रहे पूँजीवाद में लाभप्रद निवेश के अवसर सीमित हो गये हैं। ऐसे में सट्टेबाज़ी की इस नयी सम्भावना की वजह से तमाम दलाल और हेज फ़ण्ड लार टपकाते हुए इसमें निवेश कर रहे हैं। अमेरिका की सीएमई और सीबीओई जैसे संस्थाओं ने दिसम्बर के महीने से बिटकॉइन में फ़्यूचर्स और डेरिवेटिव ट्रेडिंग भी शुरू कर दी है। सीएनबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस समय 120 से ज़्यादा हेज फ़ण्ड बिटकॉइन और अन्य डिजिटल करेंसियों पर निवेश कर रहे हैं। ऐसे में इसमें क़त्तई आश्चय की बात नहीं है कि सट्टेबाज़ी का यह बुलबुला फूलता जा रहा है। ग़ौरतलब है कि 1970 के दशक से ही मुनाफ़े की गिरती दर के संकट की वजह से मृत्युशैया पर लेटे पूँजीवाद में सट्टेबाज़ी के बुलबुलों के सहारे ही समय-समय पर थोड़ी जान आती दिखती है। ये बात दीगर है कि जब ये बुलबुले फूटते हैं तो तबाही का मंज़र छा जाता है।

मुद्रा के रूप में बिटकॉइन का भविष्य

बिटकॉइन के अतिउत्साही समर्थक बिटकॉइन को एक युगपरिवर्तनकारी मुद्रा के रूप में प्रस्तुत करते हैं। उनके अनुसार चूँकि बिटकॉइन किसी सरकार या बैंक के नियन्त्रण में नहीं है और चूँकि वह विकेन्द्रीकृत है इसलिए इस मुद्रा के इस्तेमाल से लोग अपने पैसे पर ख़ुद नियन्त्रण कर सकते हैं और सरकार की मौद्रिक नीतियों व बैंकों द्वारा वसूले जाने वाले ख़र्च से बचा जा सकता है। तमाम क़ि‍स्म के ‘लिबर्टेरियन’ और अराजकतावादी विचार रखने वालों को ये बातें बहुत भाती हैं और वे इसको पूँजीवादी संकट के एक रैडिकल समाधान के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ऐसे लोग 2007-08 की मन्दी का हवाला देते हुए कहते हैं कि मुद्रा पर बैंकों और सरकार का नियन्त्रण होने की वजह से मन्दी के बाद आम लोगों के पैसे से ही बैंकों को बेलआउट किया गया। इसी प्रकार 2013 में साइप्रस की सरकार द्वारा संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए बैंक खातों में एक निश्चित राशि से अधिक जमा हुए पैसों को ज़ब्त करने के बाद बिटकॉइन के समर्थकों के इस प्रचार को बल मिला कि सरकार और बैंकों के नियन्त्रण में रहने वाली मुद्रा पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह पूँजीवादी संकट की एक निम्न-बुर्जुआ प्रतिक्रिया और समाधान है जो लोभ-लालच और मुनाफ़ाख़ोरी पर टिकी समूची व्यवस्था का विकल्प ढूँढ़़ने के बजाय मौजूदा व्यवस्था के भीतर ही सरकार और बैंकों द्वारा नियन्त्रित केन्द्रीकृत मौद्रिक ढाँचे का विकल्प एक विकेन्द्रीकृत मुद्रा में ढूँढ़़ता है।

ऐसे में यह सवाल लाज़ि‍मी हो जाता है कि क्या बिटकॉइन वास्तव में एक वैश्विक मुद्रा के रूप में प्रचलित हो सकती है। एक तकनीक के रूप में ब्लॉकचेन निश्चय ही एक ऐसा नवोन्मेष है जिसका भविष्य में समाजवादी व्यवस्था में भी बहुआयामी इस्तेमाल होने की सम्भावना हो सकती है, लेकिन पूँजीवाद के रहते यह एक विश्वसनीय विश्वव्यापी मुद्रा बन पायेगी इसकी सम्भावना बहुत कम है। इसकी वजह यह है कि केवल ऐसी ही चीज़ मुद्रा के रूप में प्रभावी हो  सकती है जो एक ऐसे सार्वभौमिक समतुल्य का काम करे जिसके सापेक्ष अन्य मालों के मूल्य को मापा जा सके और जो विनिमय के माध्यम का भी काम कर सके। पारम्परिक रूप से धातुएँ, ख़ासकर सोना, ऐसे सार्वभौमिक समतुल्य और विनिमय के माध्यम का काम करती थीं। यह बात सच है कि आधुनिक दौर में काग़ज़ के नोट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम ने भी मुद्रा का स्थान ग्रहण किया है जिनका स्वयं का मूल्य किसी सुनिश्चित मात्रा में धातु की मुद्रा के बराबर हो ऐसा आवश्यक नहीं है। लेकिन ग़ौरतलब बात यह है कि ऐसा इसलिए मुमकिन हो पाता है कि देशों की सरकारें इसकी गारण्टी देती हैं और उनकी यह क्षमता उनकी अर्थव्यवस्था की स्थिति से निर्धारित होती है। चूँकि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टोकरेंसी किसी भी देश की सरकार और बैंकों द्वारा नियन्त्रि‍त और संचालित नहीं है, इसलिए एक वैश्विक मुद्रा के रूप में इसकी विश्वसनीयता हमेशा सन्दिग्ध बनी रहेगी। इसके अतिरिक्त इसकी एक सीमा यह भी है कि पूँजीवादी ढाँचे में निहित डिजिटल खाई के मद्देनज़र इण्टरनेट का इस्तेमाल न करने वाले दुनिया के अरबों लोगों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है। साथ ही हाल के वर्षों में बिटकॉइन की विनिमय दर में हुए भयंकर उतार-चढ़ाव को देखते हुए भी मुद्रा के रूप में इसकी स्वीकार्यता पर बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न है क्यों‍कि मुद्रा की एक बुनियादी शर्त एक समयान्तराल में उसकी सापेक्षिक स्थिरता होती है। अकेले वर्ष 2107 में ही पाँच बार ऐसा हुआ कि बिटकॉइन के मूल्य में एक दिन के भीतर ही 30 प्रतिशत का फेरबदल हुआ। इसके अतिरिक्त बिटकॉइन के निर्माण की प्रक्रिया भी उसके एक स्वीकार्य मुद्रा के रूप में प्रचलित होने पर प्रश्नचिह्न लगाती है। ग़ौरतलब है कि बिटकॉइन एक कम्प्यूटर प्रोग्राम के ज़रिये निर्मित होती है जिसका मालों के उत्पादन से कोई समानुपातिक सम्बन्ध नहीं है। इसके अतिरिक्त बिटकॉइन की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल होने वाली क्रिप्टोग्राफ़ी की तकनीक के बावजूद यह हैकिंग, चोरी और धोखाधड़ी से पूरी तरह से मुक्त नहीं है। अबतक के छोटे-से जीवनकाल के दौरान ही बिटकॉइन की चोरी और धोखाधड़ी के कई मामले सामने आ चुके हैं जिनकी वजह से चीन और रूस जैसे कई देशों में इस पर तमाम क़ि‍स्म की पाबन्दियाँ भी लगायी जा चुकी हैं। साथ ही बिटकॉइन के नाम पर दुनिया भर में चल रही सट्टेबाज़ी का बुलबुला क़ाबू से बाहर होने पर तमाम सरकारें इसपर निश्चित ही नकेल कसना शुरू करेंगी जिससे सरकारों के हस्तक्षेप से  स्वायत्त होने का बिटकॉइन समर्थकों का दावा खोखला साबित हो जायेेगा। इतनी सीमाओं को देखते हुए अगर भविष्य का अनुमान लगायें तो पूँजीवाद के दायरे में अधिक से अधिक यह हो सकता है कि मुद्रा के रूप में बिटकॉइन का उपयोग एक अत्यन्त सीमित रूप में होने लगे जिसके कुछ उदाहरण दिखने भी लगे हैं।

बिटकॉइन के कुछ अतिउत्साही समर्थक इसके न सिर्फ़ सरकार के नियन्त्रण से मुक्त होने का दावा करते हैं बल्कि इसके विकेन्द्रीकृत स्वरूप का हवाला देते हुए इसे कॉरपोरेट नियन्त्रण से भी मुक्त बताते हैं। यह बात सच है कि बिटकॉइन के निर्माण और संचालन की प्रक्रिया में किसी केन्द्रीय ढाँचे या केन्द्रीकृत संसाधन जैसे कि बड़े-बड़े सर्वर आदि की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि निर्माण और संचालन का काम फि़लहाल दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहे बिटकॉइन ‘माइनर्स’ करते हैं। परन्तु इस विकेन्द्रीकृत ढाँचे में भी केन्द्रीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ग़ौरतलब है कि बिटकॉइन ‘माइनिंग’ का काम साधारण कम्प्यूटर पर नहीं किया जा सकता है, इसके लिए बहुत अधिक प्रोसेसिंग रफ़्तार वाले विशेष क़ि‍स्म के कम्प्यूटर की आवश्यकता होती है जिसमें बहुत ज़्यादा ऊर्जा की खपत होती है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ फि़लहाल बिटकॉइन ‘माइनिंग’ में लगने वाली बिजली का कुल खर्च आयरलैण्ड जैसे देश के कुल बिजली खर्च से अधिक है। बिटकॉइन ‘माइनिंग’ की प्रतिस्पर्द्धी प्रक्रिया में बिटकॉइन लेनदेन को सत्यापित करने के लिए ‘माइनर्स’ के बीच होड़ लगी रहती है क्योंकि सबसे पहले सत्यापित करने वाले ‘माइनर्स’ के खाते में कुछ बिटकॉइन जाते हैं। इस होड़ में अपनी सफलता की सम्भावना बढ़ाने के लिए कई ‘माइनर्स’ ने अपने संसाधनों की पूलिंग करना शुरू कर दिया है जोकि स्पष्ट रूप से केन्द्रीकरण की प्रक्रिया की ओर इंगित कर रहा है। ऐसे में अगर भविष्य में बिटकॉइन का प्रचलन बढ़ता भी है तो इस सम्भावना से हरगिज़ इनकार नहीं किया जा सकता है कि बिटकॉइन ‘माइनिंग’ करने वाली बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ खुलने लगें। इस प्रकार कॉरपोरेट के नियन्त्रण से मुक्त होने का दावे का भी कोई आधार नहीं रह जायेेगा।

 

दिशा सन्धान – अंक 5  (जनवरी-मार्च 2018) में प्रकाशित

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