उपन्‍यास अंश : ‘‘मुझे तो कोई खतरा नहीं है, पर आपको है, सर!’’ : हावर्ड फास्ट

‘‘मुझे तो कोई खतरा नहीं है, पर आपको है, सर!’’

  • हावर्ड फास्ट
    अनुवाद: सुरेन्द्र कुमार

हावर्ड फास्ट के प्रख्यात, पर आज दुर्लभ उपन्यास ‘सिलास टिम्बरमन’ का एक अध्याय हम यहां प्रस्तुत कर हैं। ‘सिलास टिम्बरमन’ अमरीका के एक विश्वविद्यालय के एक गुमनाम-से कालेज के प्रोफेसर की कहानी है, जो शिक्षा-जगत में आजाद ख्यालों के लोगों का पीछा कर रहे शिकारी कुत्तों और भेड़ियों के उन्माद और हुआं-हुआं के शोर से उत्पन्न भयावह चक्रवात में फंस गया है। यह कहानी है उस दौर की जब प्रगति और परिवर्तन के हामी हर विचार और हर व्यकित को कुचलने की राष्ट्रव्यापी साजिशें रची जा रही थीं और साथ ही यह समाज से कटे एक बुद्धिजीवी के जागने और उन शक्तियों के खिलाफ आवाज बुलन्द करने की कहानी है। – सम्पादक

2 नवम्बर, बुधवार की रात और कैम्पस में आइक एम्सटरडम के पक्ष में आयोजित होने वाली विरोध सभा से एक दिन पहले की बात है। सिलास देर गये रात तक अगले दिन के लिए अपना बयान तैयार कर रहा था। वह एक तथ्य पर ऐसे अन्दाज में, जिसमें कुछ अचरज और उससे कुछ ज्यादा विनम्रता का भाव था, सोच में डूबा हुआ था: उसे ध्यान आया कि उसकी अब तक की जिन्दगी में हालांकि एक के बाद दूसरा दिन क्लासरूमों में लेक्चर देते हुए ही कटा था, पर वह इससे पहले कभी किसी आम सभा में नहीं बोला था। अपने मन और मस्तिष्क पर बुरी तरह छायी नाना प्रकार की शंकाओं और आशंकाओं का विवेचन कर चुकने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचा कि इन शंकाओं-आशंकाओं में सबसे भयावह स्थान इस तथ्य का है कि उसे तो इस बार क्लासरूम की चहारदीवारी से घिरी पनाहगाह के बाहर जाकर बोलना था (पनाहगाह की तो उसकी जिन्दगी में गहरी जगह थी, उसकी जिन्दगी का एक महत्वपूर्ण कारक था।) शायद उसकी जिन्दगी के एक अच्छे-खासे हिस्से का सरोकार एक ऐसी ही पनाहगाह की तलाश में रहा-उन तमाम उन्मत्त तूफानों से बचने के लिए पनाहगाह की तलाश जो सारी दुनिया में गर्जन-तर्जन किया करते थे, परन्तु जिनसे वह अछूता रहा; यह थी उन भयावह कृत्यों से जो एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के विरुद्ध किया करता है, बचने के लिए पनाहगाह की तलाश; यह थी भूख और ठंड के राक्षसी पंजों से बचने के लिए पनाहगाह की तलाश; विषादमय, उलझनभरे विवादों-कलहों से, जिन्हें राजनीति का नाम दिया जाता है, बचने के लिए पनाहगाह की तलाश। क्लासरूम एक ऐसी ही पनाहगाह थी, जहां मनुष्य उसमें, अपने क्लासरूम में राजा हुआ करता था, जहां उसकी बातें उसके छात्र सुना करते थे और जहां वह, प्रोफेसर टिम्बरमन, सदा ही ऐसा व्यक्ति हुआ करता था जो पास में बैठे व्यक्ति से कुछ ज्यादा ही जानता था।

परन्तु इस समय तो उसे पक्का यकीन नहीं था कि वह पास में बैठे व्यक्ति से कुछ ज्यादा ही जानता है। अपने एक नजदीकी और प्रिय व्यक्ति के साथ जो कुछ हो रहा था, उसके प्रति अपना आक्रोश प्रकट करने के लिए वह शब्द ढूंढ़ने के लिए भटक रहा था, जूझ रहा था। लेकिन लगता था कि वह इस मामले में जरा भी आगे नहीं बढ़ पा रहा है और गहरा सच तो यह था कि वह अपनी इच्छा के विरुद्ध लिख रहा था; और सब कुछ के बावजूद असलियत तो यही थी कि उसकी इच्छा अब भी अपनी जिन्दगी शान्तिपूर्वक बसर करने की थी-किसी का भी हाथ उसके खिलाफ न उठे। उसने अपने छोटे-से अध्ययन कक्ष के चारों ओर नजर दौड़ायी और मन ही मन सोचा कि यही तो असल में वह चीज है, जिसकी मनुष्य कामना करता है – मजबूत आधार पर टिकी सुख-सुविधाएं। इनके अपने पास रहने का यकीन; बांज की लकड़ी की बड़ी टिकाऊ आरामदेह मेज जिसके पास कुर्सी पर बैठकर वह लिखा करता है; फर्श से ऊपर छत तक फैले किताबों के शेल्फ; शताब्दियों से प्रवहमान ज्ञान-प्रज्ञान का नन्हा-सा सागर; उनमें से प्रत्येक मूल, संस्कृति, परम्परा के धागों से बुने गुच्छों के अन्दर मजबूती से संरक्षित हैं; उनमें से प्रत्येक मनुष्य के चिन्तन और सभ्यता के एक या दूसरे पहलू को आलोकित कर रहा है; वे सब इस आलोक को नयनाभिराम हरी छटा दे रहे हैं। वहां रखे लैम्प; आरामकुर्सियां, दीवारों को सुशोभित कर रही वे कलात्मक प्रतिकृतियां, जिन्हें उसने माइरा के साथ बहुत चाव और सावधानी से चुना था; हाथ से बुना गलीचा जिस पर एक खूबसूरत जलयान और हवा में पूरी तरह फैले पाल की अनुकृतियां हैं; और गलीचे पर प्राचीन लातिनी भाषा में यह अनूठा फिकरा अंकित था – Homo sum : humani nihil a me alienum puto – जाने उसने कितनी बार ऊपर नजर दौड़ाकर यह पता लगाने का इरादा बनाया कि ये शब्द किसके हैं – सिसेरो के या किसी अन्य के? न जाने कितनी बार इस वाक्य ने उसकी जबान पर चक्कर खाये होंगे: मैं मनुष्य हूं और जिस किसी भी बात का मनुष्य से सरोकार न हो, उसे मैं अपने लिए उपेक्षा की वस्तु मानता हूं! कितने सुन्दर ढंग से बात कही गयी है। और यहां यही चीज तो गहन सुख-सुविधा का सार थी; लेकिन फिर उसके दिमाग में विचार उठा कि बात कतई ऐसी नहीं है और सारा सारतत्व और सुरक्षा यहां गरम इलाकों के तूम्बे की तरह खोखले हैं जिसके अन्दर का गूदा तो सूख जाता है और सख्त बीज खोखलेपन के बीच एक-दूसरे से टकराने को रह जाते हैं। प्रोफेसर ने पांडुलिपि के करीने से रखे हुए कागजों के ढेर पर नजर दौड़ायी। इसमें तीन अध्याय थे, जिन्हें वह पूरा कर चुका था और पांडुलिपि का नाम उसने आरजी तौर पर मार्क ट्वेन एंड द कंट्री आफ हिज च्वायस (‘मार्क ट्वेन और उनकी पसन्द का देश’-अनु.) रखा था। और तब उसने घोर निराशाभरी, व्यथित भावना के साथ अनुभव किया कि यह तो सरासर धोखाधड़ी है और मार्क ट्वेन के बारे में वह बहुत ही कम जानता है और उसके पसन्द के देश के बारे में तो और भी कम, जिससे मार्क ट्वेन नफरत करता था, जिस पर आगबबूला हो उठता था और झपट पड़ता था।

जब सिलास ने अपनी पुस्तकों पर, ढेर सारी पुस्तकों पर, संजोकर रखे गये इस भंडार पर फिर नजर दौड़ायी तो उसके ध्यान में केवल प्राचीन मिस्र के वे ही लेखक आये, जो अपनी संस्कृति की गतिहीन निरंकुशता के बीच बर्फ की तरह जम चुके थे और जिन्होंने अपना पूरा जीवन और भी प्राचीन कृतियों की अध्यवसायपूर्वक नकल करते-करते बिता दिया था और ऐसा करते हुए वे अपने मन में यह भ्रम पालते रहे कि वे साहित्य के विलुप्त सृजनात्मक कला पर काम कर रहे हैं।

पर प्रोफेसर ने तब राहत की सांस ली, जब माइरा ने कमरे में प्रवेश किया और उसकी बगल में बैठ गयी और प्रोफेसर को कुछ ऐसे विनोदभरे और कुछ प्रश्नसूचक ढंग से देखने लगी, जो उसका अपना खास अंदाज था।

‘‘बच्चे मीठी नींद सो रहे हैं’’, वह बोली, ‘‘मीठी नींद में बच्चे संसार के बाकी सब लोगों से अधिक सुन्दर लगते हैं। मुझे यकीन है, इन्हें देखकर कहीं अधिक सकून मिलता है। तुम्हारा क्या ख्याल है? मैं लकड़ियां लायी हूं, वह अंगीठी में जलने लगी हैं। चलो, वहां आग तापते रहेंगे एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए। क्या यह एक खूबसूरत विचार नहीं है? बोलो, यह चलेगा?’’

‘‘नहीं चलेगा। मैं सिर्फ दो ही पैराग्राफ लिख पाया हूं।’’

‘‘पढ़कर सुनाओ।’’

‘‘बिल्कुल बेकार। सुनो यह-‘मुझे आइक एम्सटर्डम को जाने बीस बरस बीत गये हैं। इन बीस बरसों में वह दोस्त, अध्यापक रहा।’ ओह, भाड़ में जाये यह सब! बिल्कुल बेकार। मैं वह नहीं कह पा रहा हूं, जो मैं कहना चाहता हूं।’’

‘‘क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘वाकई पता नहीं क्या कहना चाहता हूं, सिवाय इसके कि छाती पीट-पीट कर, रोते-चिल्लाते हुए कहना चाहता हूं कि यहां कुछ ऐसा घट रहा है, जो घिनौना है, जो वीभत्स है, कुछ ऐसा घट रहा है, जो रुग्ण है, जो जर्जर और सड़ा-गला है, मौत का आभास देता है और उसकी भयंकर दुर्गन्ध धरती से आकाश तक फैली हुई है।’’

‘‘और तुम इसलिए यह नहीं कह पाते, क्योंकि उस पर विचार नहीं किया जायेगा, उसे निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ नहीं माना जायेगा।’’

‘‘कटाक्ष करने से तो कोई मदद मिलने वाली नहीं।’’

‘‘मैं कटाक्ष करने का यत्न नहीं कर रही हूं। मैं भी इस पर सोच-विचार करती रही हूं। मैं तुमसे कुछ पूछना चाहती हूं-यह इस मामले की तह में है। तुमने एटम बम के खिलाफ उस कागज पर दस्तखत क्यों किये थे?’’

‘‘और तुमने?’’

‘‘मैं तो तुमसे पूछ रही हूं, सिलास। अपना सवाल बाद में करना।’’

‘‘तो ठीक है। चलो, बताने की कोशिश करता हूं। आदमी कोई काम क्यों करता है, यह जानना-बताना आसान नहीं है। हम जैसे लोगों को, माइरा, लगभग कभी यह नहीं समझाना पड़ता कि हम जो करते हैं, वह क्यों करते हैं।’’

‘‘सचमुच नहीं समझाना पड़ता, अक्सर नहीं।’’

‘‘एलेक ब्रैडी ही मेरे पास वह कागज लेकर आया था और तुम्हें पता है, माइरा, ज्यों ही उसने वह कागज मुझे दिखाया, और उसके बारे में बताने लगा, मैं जान गया कि वह कौन है।’’

‘‘कम्युनिस्ट!’’

माइरा की आंखें अनायास अध्ययन-कक्ष के दरवाजे की ओर घूम गयीं और सिलास लगभग कर्कश स्वर में बोला: ‘‘तो यह है बात! फिर ऐसा क्यों किया? या खुदा, यह दुनिया ऐसी क्यों है, जिसमें इन्सान डरकर और आतंकित होकर बात तक नहीं कर सकता? यह कैसा दुःस्वप्न है, जिसमें हम जी रहे हैं – यह किस किस्म का कुलीन, सभ्य, अपवित्र दुःस्वप्न है, जिसमें हम जी रहे हैं? मैं अपने से कहता हूं, मैं तो संयुक्त राज्य अमेरिका का जन्मना स्वतंत्र, स्वाधीन नागरिक हूं, पर मैं कम्युनिस्ट शब्द को जबान तक पर नहीं ला सकता, इसमें खतरा जो है; मेरी पत्नी भयभीत है और घबरायी हुई इधर-उधर नजर घुमाती है यह देखने के लिए कि कहीं कोई उसके पति की बात सुन तो नहीं रहा?’’

‘‘तो फिर अगर इस तरह चिल्लाओगे तो तुम्हें जरूर कोई सुन लेगा।’’

‘‘यह अमरीका का इंडियाना राज्य है, जर्मनी नहीं।’’

माइरा बहुत शान्त हो गयी, दोनों हाथ सटाकर गोदी में रखे हुए, सिलास के बारे में ऐसी अजीब-सी दिलचस्पी से सोचते हुए, जो किसी नये लेकिन रहस्यमय अजनबी को देखकर पैदा होती है। ‘‘तो ठीक है, तुम्हें पता था कि एलेक ब्रैडी कम्युनिस्ट है। अच्छा फिर यह बताने में बुरा तो नहीं लगेगा तुम्हें कि तुम्हारी उससे जान-पहचान कैसे हुई?’’

‘‘मुझे याद है कि कैसे जान-पहचान हुई, परन्तु इस बात का कोई अर्थ ही नहीं है। तुमने पूछा कि मैंने उस कम्बख्त कागज पर दस्तखत क्यों किये? तो सुनो, मैंने ब्रैडी पर नजर दौड़ायी पर अपने से ही पूछा कि यह शख्स यह कागज लेकर लोगों के पास क्यों जा रहा है; मेरी प्रिय माइरा, मेरी प्रिय, नेक, प्यारी पत्नी, तुम जानती हो कि हम ऐसी दुनिया में रह रहे हैं, जो सिद्धान्त के मामले में बिलकुल खोखली है, जो स्वार्थ के अलावा बाकी सभी अर्थ-हितों से अनजान है, जो किसी गृह-देवता की भांति रक्षा कर रहे रसोईघर में रखे उस मनहूस रेफ्रिजेरेटर की तरह अभिशप्त है। यह समझने की कि वह उस कागज को लेकर क्यों चक्कर काट रहा है, सिर्फ एक वजह, बस एक ही वजह ढूंढ़ सका-वह वजह थी कि वह कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य है। और तुम्हें पता है, मैंने इस बारे में पूछा भी।’’

‘‘उसका जवाब क्या था?’’ माइरा ने जानना चाहा। ‘‘अगर बताना चाहो, तो बताओ।’’

यह किस्सा जून महीने के शुरू-शुरू का है। जून महीने में, क्लासें बंद होने से पहले, चंद दिन पहले ही! सिलास और ब्रैडी बांज के वृक्षों की छायादार वीथिका के, जिसके लिए क्लेमिंग्टन कैम्पस को उचित ही ख्याति मिली हुई है, छोर पर पत्थर की एक बेंच पर बैठे हुए थे। शाम के लगभग पांच बजे का वक्त था। गर्मियों में दोपहर बाद की लम्बी होती छायाएं; सांझ का आवरण मंथर गति से उस स्थान को अपनी लपेट में ले रहा था; इस सबने सिलास को याद दिलायी उस अवश्यम्भावी विषाद की जिसे वह अनुभव करता रहा था। ब्रैडी खुद उससे कुछ कहना चाहता था और बातचीत करते हुए वे वहां पहुंच गये। कभी एक विषय की तो कभी दूसरे विषय की चर्चा करते रहे। वह एक तरह खुद ब्रैडी के साथ में होने से खुश था। वह इस शख्स को समझने की अपेक्षा उसे पसन्द ज्यादा करता था। इस समय वह यों ही सोच रहा था कि ब्रैडी के मन में क्या है। सच्ची बात तो यह है कि वह ब्रैडी को पसन्द करता था, उसका प्रशंसक था। उसके सामने थोड़ी घबराहट-सी महसूस करता था। सिलास की सोच का एक हिस्सा यह भी था कि वह कैम्पस में जिन लोगों को जानता और पसन्द करता था, उनमें उसका कुछ हद तक अविश्वास भी था, उसे लगता था कि उनके सामने उसका स्तर कुछ नीचे है। इस तरह वह अपने ही अलगावपन को पोषित करता रहा। उनके तिरस्कार से बचता था। परन्तु ब्रैडी में एक ऐसा गुण था, जो दूसरों में सहजता की भावना पैदा करता था। उसके, कहना चाहिए, भद्दे से लम्बे नाक-नक्श उसके चेहरे को प्रभावात्मक बनाते थे, उसके गंजे सिर के किनारे-किनारे ललछौंहें बाल सन्त की आभा और मसखरे की शक्ल-सूरत के बीच सन्तुलन बनाने का काम देते लगते थे। और दूसरे कई आयरिशों की तरह ब्रैडी भी अपनी आवाज को बहुत प्रभावशाली ढंग से इस्तेमाल करता था।

सिलास के साथ उसके सम्बन्ध बहुत घनिष्ठ तो नहीं थे, लेकिन उनका स्रोत आइक एम्सटर्डम के प्रति आपसी श्रद्धा-भाव था। परन्तु यह ब्रैडी नहीं वरन सिलास था, जो आपसी सम्बन्धों में प्रगाढ़ता लाने में पीछे रहता। सिलास ने ब्रैडी के संग बिताये कुछ शामों का भरपूर आनन्द उठाया था, दुनिया में इस समय घट रही और अतीत में घट चुकी बातों के साथ यह प्रभावशाली व्यक्ति जिस शुष्क ढंग से और बेरहमी के साथ पेश आता था, वह सिलास पर जादू कर देता था। परन्तु इसके साथ ही साथ उसे इससे वितृष्णा भी होती थी। सिलास उन लोगों के बीच बहुत असहज रहता था, जिनका ज्ञान विशिष्ट लक्ष्य-केन्द्रित होता था और जिनकी सम्मतियां तीक्ष्ण, निर्ममतापूर्ण होती थीं। वह अपने से कुछ चिड़चिड़ेपन के साथ सवाल करताः ‘‘ब्रैडी, जिसकी संगत को मैं तरजीह देता हूं, पर क्या वह भी मेरी संगत को तरजीह देता है?’’ इस समय उसने अपने से सवाल किया और उसे इस बात से कुछ सन्तोष मिला कि ब्रैडी उससे कुछ चाहता है। ब्रैडी के पास वह मांग-पत्र था, जिसमें एटम बम को अभी और सदा-सर्वदा के लिए निषिद्ध घोषित करने का आह्वान किया गया था; फिर भी यह चीज हर वस्तु को देखकर नाक-भौं सिकोड़ने वाले व्यक्ति के स्वभाव से मेल नहीं खाती थी। उसे पढ़ चुकने के बाद – यह मांग-पत्र बहुत संक्षिप्त था – वह कुछ देर खामोश बैठा रहा और इस बीच उसके दिमाग में विचारों की परतों का अम्बार बनता चला गया, हालांकि ये परतें किसी तरह के खास प्रसंगों से जुड़ी हुई नहीं थीं। और तब वह इस फैसले पर पहुंचा कि ब्रैडी कम्युनिस्ट है। ‘‘उन सबमें ब्रैडी और वह कम्युनिस्ट!’’ उसने मन ही मन कहा। और फिर क्षणभर के लिए वह मांग-पत्र को भूल गया। इस अद्भुत तथ्य की खोज करने के लिए वह अपने पर ही मोहित हो गया, हालांकि यह शायद उतना अद्भुत नहीं था। बिलकुल अपने आम स्वभाव के अनुसार सिलास ने तुरन्त और सीधे सवाल कर दिया: ‘‘तुम कामरेड हो?’’

‘‘क्यों पूछ रहे हो?’’ ब्रैडी ने जानना चाहा।

माइरा को यह बात सिलास ने पांच महीने बाद समझायी। ऐसे मांग-पत्र लेकर लोग अक्सर दूसरों के सामने नहीं जाते। एक विराट एटमी उड़नतश्तरी तैयार की ली गयी है। और इसमें हरेक अलग-अलग उड़ान भरने के लिए तैयार है। सिलास का इस बात से कोई सरोकार नहीं था कि उसका पड़ोसी, उसके पड़ोसी की पत्नी और बच्चे या दस लाख लोग भस्म हो जायेंगे। जनमानस तो इसी तरह ढाल दिया गया था और सिलास का दिमाग भी अपने आसपास के हर व्यक्ति की तरह इसी सांचे में ढला हुआ था।

ब्रैडी के सवाल के जवाब में सिलास बोला:

‘‘तुमने मुझसे इस मांग-पत्र पर दस्तखत करने के लिए कहा तो इसकी और वजह क्या हो सकती थी?’’

‘‘यह हम पर और हमारी जिन्दगियों पर बहुत ही कड़वी टिप्पणी है। है कि नहीं?’’

‘‘हां, जब तुम इस ढंग से देखो।’’

‘‘इसे देखने का दूसरा तरीका कौन-सा है, सिलास?’’

‘‘खैर, तुम समझते हो कि मेरा आशय क्या है। अगर तुम्हारी ही तरह मैं भी महसूस कर पाता कि इस रूस की पहेली के पीछे निरर्थक आतंक, जबरन थोपे गये अनुशासन के अलावा कुछ ऐसा भी है, जो अच्छा है, जो कुछ और भी है!’’

‘‘तुम कैसे यह जानते हो कि मैं इस ढंग से सोचा करता हूं? तुम्हारा कहने का मतलब क्या यह है कि तुमने तय कर लिया है कि मैं जरूर कम्युनिस्ट हूं?’’

‘‘मेरा ऐसा ही ख्याल है। तुम जरूर कम्युनिस्ट हो।’’

‘‘जब तुमने मेरे बारे में तय कर ही लिया है, तो मेरा उत्तर सुनने की तुम्हारी जिज्ञासा पूरी करने के लिए इस मुद्दे पर चर्चा करने का कोई खास अर्थ ही नहीं रह जाता।’’

यह कहते हुए ब्रैडी ने मुस्कराते हुए पूछा: ‘‘इस पर दस्तखत करोगे?’’

‘‘इसे तुम मेरे पास लाते ही न, अगर तुमने यह सोचा होता कि मैं दस्तखत नहीं करूंगा’’, सिलास ने कुछ उदास स्वर में कहा।

‘‘मेरा भी ख्याल है, शायद नहीं लाता।’’

‘‘इससे कोई फायदा होने नहीं जा रहा। क्या, एलेक, तुम्हारे और मेरे बीच यह अन्तर होगा? मेरा इस बात में यकीन नहीं है कि इस तरह की चीजों से कोई फायदा होगा, कतई नहीं।’’

‘‘अगर काफी तादाद में लोग कुछ कहें, तो उनकी बात सुनी जायेगी।’’

‘‘काफी तादाद में?’’ यह कहते हुए सिलास की नजर ब्रैडी से दूर, कैम्पस की ओर चली गयी।

‘‘यह भूमंडल बस क्लेमिंगटन तक सीमित नहीं है। पूरी दुनिया की एक ही ख्वाहिश है, लोग इस बात से थक चुके हैं कि दूसरे उन्हें इस्तेमाल करते रहें।’’

‘‘मुझे लगता है, मामला यह है कि कौन किसे सबसे ज्यादा होशियारी से इस्तेमाल करता है। मैंने सबसे सुना है कि यह रूसी मन्सूबा है, है कि नहीं?’’

‘‘मैं इस पर भी बहस नहीं करूंगा, हालांकि इससे इन्कार करता हूं। मुद्दा यह है कि मौत का यह भंयकर नृत्य शुरू होने से पहले ही रोक दिया जाये।’’

‘‘अगर मैं इस पर दस्तखत कर दूं’’, सिलास ने मांग-पत्र पर नजर गड़ाते हुए, उसे फिर से पढ़ते हुए कहा, ‘‘अगर मैं इस पर दस्तखत कर दूं, तो इसका मतलब मुसीबत मोल लेना है, ठीक है न? और सभी की तरह मैं भी इस तरह की चीजों पर दस्तखत करने से डरा करता हूं। मुझे ऐसी चीजें डाक से मिला करती हैं, पर मैं उन पर तब भी दस्तखत नहीं करता, जब मैं उन्हें न्यायोचित मानता हूं। हरेक की तरह मैं भी अपने ही छोटे-से झूठ के साथ जी लेता हूं। मैं एक आजाद मुल्क में रहता हूं, जहां मैं एक मांग-पत्र पर दस्तखत करने से डरता हूं और फिर इस डर को अपने से यह कहते हुए न्यायसंगत ठहराता हूं कि मुझे इस्तेमाल किया जा रहा है, कि यह एक तिकड़म है, एक मुखौटा है, एक जाल है,’’ सिलास ने ब्रैडी पर नजर दौड़ायी और बोला: ‘‘ये तुम्हारी दलीलें हैं, है न?’’

‘‘नहीं, ये तुम्हारी दलीलें हैं,’’ ब्रैडी ने जवाब दिया।

‘‘क्या फर्क पड़ता है? मेरे ख्याल से मैं इस पर दस्तखत करने नहीं जा रहा हूं। तुमने कैसे यह मान लिया कि मैं दस्तखत कर दूंगा?’’

‘‘तुमने अभी-अभी जो कहा, उस वजह से। मेरा ख्याल है बहुत खराब वक्त है यह, सिलास, अब से लेकर ठीक पतझड़ तक रूस के बारे में बोलते जाओ, पर इससे यह तथ्य रत्तीभर नहीं बदलता कि यह बहुत मनहूस वक्त है – खौफ की भारी दीवाल के पूरे राष्ट्र पर भरभराकर गिरने की आशंका, पूरे राष्ट्र का भयभीत रहना, यह मानने से डरना कि वे दिग्भ्रमित हैं, निरस्त्र हैं। अध्यापकों का भेड़-बकरियों की तरह पीछा किया जा रहा है, विद्वानों से कहा जा रहा है कि उन्हें क्या सोचना चाहिए और नहीं सोचना चाहिए, लेखकों से कहा जा रहा है कि उन्हें क्या लिखना चाहिए और क्या नहीं लिखना चाहिए और अगर वे बतायी गयी लीक पर नहीं चलते, तो उनकी पुस्तकें जला दी जाती हैं।-यह है हमारे इस वक्त की मुहर! हम कहा करते थे-देशभक्ति लुच्चे-लफंगों की आखिरी शरण-स्थली है, लेकिन अब यह कायरों की भी शरण-स्थली बन गई है। पर देखो, यह पहला मौका नहीं है कि ऐसी बात हो रही है और यह पहली जगह नहीं है, जिसके साथ ऐसा हुआ है। पर यह सचमुच कारगर साबित नहीं होता। ऐसा नहीं हो सकता कि तुम सोलह करोड़ लोगों को एक कतार में खड़ा कर दो, चाबुक चटकाओ और उन्हें लोहे के छल्ले के बीच से कूदने के लिए विवश कर दो। ऐसे लोग हमेशा रहेंगे, जो कूदने से इंकार कर देंगे, जो सोचने के अपने हक पर, यथार्थ को देखने के अपने हक पर डटे रहेंगे, और ठीक यही चीज है, जो उन्हें इन्सान बनाती है; ये लोग अपनी इन्सानियत को तिलांजलि नहीं देंगे। इसी वजह से मैं सोचता हूं कि तुम इस मांग-पत्र पर दस्तखत कर दोगे, भले ही तुम तय कर बैठे हो कि मैं कम्युनिस्ट हूं और यह सब एक कम्युनिस्ट जाल है।’’

आखिरकार सिलास ने उसपर दस्तखत कर दिये, यह उसने माइरा को बताया था।

और सिलास की समझ में तत्काल यह बात नहीं आयी कि माइरा ने आखिरकार यह सवाल किया ही क्यों। समझ में न आने का कारण यह था कि अक्सर सवाल जवाब के ब्यौरे के बीच खो जाता है। वह, सिलास टिम्बरमन, एक साथ दो ‘‘चीजें’’ था, दो शख्स था, दो जिन्दगियां था, एक विशेष अवबोधन के दो हिस्से था। एक जिंदगी, जो वह जी रहा था, दूसरी जिंदगी वह अवबोधन थी, जो क्रियाशीलता के बिना ही अस्तित्वमान थी। अलबत्ता एक अपवाद को छोड़कर, जब क्रियाशीलता उस पर थोप दी जाती थी, जैसे कि उस समय, जब कुछ क्षणों के लिए पूरे अमरीका ने और बाकी दुनिया के एक अच्छे-खासे बड़े हिस्से ने मनोरंजन, चिन्ता और शायद संत्रस के घुले-मिले भावों के साथ यह पढ़ा कि मध्य-पश्चिमी अमरीकी विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर को इस बात की आज्ञा दे दी गयी थी कि वह मार्क ट्वेन को न पढ़ाये।

‘‘चलो छोड़ो यह सब,’’ सिलास माइरा से बोला, ‘‘कोई फायदा नहीं इससे।’’ दोनों बैठक में चले गये और अंगीठी के सामने बैठ गये। माइरा उसे ताकती रही इस अंदाज में कि उसे न लगे कि किसी की नजर उसके चेहरे पर घूम रही है। वह उसके मन में भावों के ज्वार-भाटे को, उसके अन्दर विचारों की तूफानी हलचल से पैदा तनाव और प्रति-तनाव को अनुभव कर रही थी। यह माइरा के अपने ही तर्को का निगमन था। और उसे इस चीज ने चकित कर दिया कि वह सिलास के नाम के साथ तूफानी हलचल शब्दों को जोड़ सकी। वह तो सिलास को उद्वेगहीन व्यक्ति मानने की ही आदी हो गयी थी। और यह रहा सामने बैठा मनुष्य, जिससे उसने विवाह किया था, जिसके साथ उसने अपने जीवन का इतना कुछ अंश जोड़ा था; ऊंची कद काठी का, दुबला, पतले से चेहरे वाला मनुष्य, एक तरह का भीरु मनुष्य।

हो सकता है, सिलास को यह बोध हो गया हो कि उसे माइरा समझती है। वह अब भी अपने ख्यालों में डूबा हुआ था, एलेक ब्रैडी और आइक एम्सटर्डम व साथ ही अपना भी मूल्यांकन कर रहा था। माइरा से मानो उसके मन के भाव पढ़ते हुए बोलाः ‘‘जानती हो, मैं भीरु हूं।’’ फिर उसने चुनौती भरे ढंग से माइरा पर नजर दौड़ायी।

‘‘मेरा ख्याल है, अधिकांश लोग, लगभग अधिकांश समय भीरु ही होते हैं,’’ माइरा ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाया।

‘‘कल के बारे में नहीं बोलना चाहता, नहीं बोल सकता, मैं उन छात्रों के सामने खड़ा नहीं हो सकता, बोल नहीं सकता। नहीं कर सकता, माइरा!’’

‘‘पता नहीं इस बारे में मुझे क्या करना चाहिए?’’ सिलास बोला।

‘‘वे लोग इस समय ‘फलक्रम’ (धुरी) अखबार तैयार कर रहे हैं। तुम कार लेकर वहां पहुंच जाओ और समझा दो कि किस तरह ये लोग तुम्हारा नाजायज फायदा उठा रहे हैं। और चूंकि तुम इस बात के कायल हो कि एलेक ब्रैडी कम्युनिस्ट है, दुनिया में तुम्हारे दोनों हाथों में लड्डू ही लड्डू ही रहेंगे। और इतना और कर सकते हो कि छात्र-सभा को कम्युनिस्ट साजिश बताकर उसकी निंदा करते हो।’’

‘‘इससे तो बड़ी मदद मिलेगी’’, सिलास ने टिप्पणी की।

‘‘सिलास, तुम मुझसे क्या कहने की अपेक्षा करते हो? मैं सोचती हूं कि क्या हम इस देश के लोगों की तरह नहीं है या बहुत हद तक उन जैसे हैं? हमारा बहुमूल्य ज्ञानोदय एक प्रकार का अंधकार है, है कि नहीं? तुम कायर हो और वैसी ही मैं भी हूं। पहले मैं विनोदी होने का दिखावा कर रही थी, लेकिन मेरे हृदय-मन के दूसरे भाग के कहने का वही मतलब था, जो मैंने कहा। मैं डर रही हूं और मुझे पता ही नहीं है कि मैं डर कैसे गयी। यह सब पिछले चंद हफ्तों में नहीं हुआ। हो भी नहीं सकता था,’’ माइरा बोलती गयी।

‘‘और जब तुम मेरी ओर मुड़ती हो, तो सहारे के लिए कुछ भी मौजूद नहीं है, क्या है सहारा, माइरा।’’

‘‘मुझे पता नहीं,’’ माइरा का जवाब था।

‘‘यह क्या है,’’ सिलास असहाय होने के अंदाज में बोला, ‘‘मैं 40 वर्ष का हूं परन्तु लगता है, मुझमें मात्र शून्य व्याप्त है। मैं शिशु की भांति सोया करता था, लेकिन अब बिस्तर पर लेटे-लेटे सोचता रहता हूं कि बस थोड़ा-सा वक्त अपने पास बाकी है और मैं मर जाऊंगा। सहारे के लिए कुछ नहीं है, है क्या माइरा?’’

‘‘मुझे पता नहीं,’’ माइरा बोली।

‘‘क्या बात है?’’ सिलास ने कुछ बेबसी के भाव से पूछा। ‘‘मैं चालीस साल का हो चुका हूं, पर लगता है कि मुझमें रिक्तता के अलावा और कुछ नहीं है। पहले शिशु की भांति सोया करता था, पर अब बिस्तर में करवटें बदलते हुए सोचता रहता हूं कि अब थोड़ा-सा वक्त मेरे हिस्से में बाकी है, और फिर मर जाऊंगा। और मृत्यु की महज सच्चाई से ही जी खराब हो जाता है। मुझे भय लगता है।’’

माइरा कुछ नहीं बोली, अंगारों को निहारती रही, जिसकी लौ की प्रतिच्छायाएं उसके चेहरे और नाक-नक्श पर खेलती लगतीं थीं। दोनों साथ-साथ बैठे थे-एक खूबसूरत, भरपूर शरीर और उतने ही सरस यौवन की स्वामिनी, जितना कि उसकी बगल में बैठा वह व्यक्ति शुष्क और रूखा था।

‘‘क्या, माइरा, कभी तुम्हें इस पर अफसोस होता है कि तुमने मेरे साथ शादी की?’’ सिलास ने पूछा।

‘‘हां, कभी-कभी,’’ माइरा ने उत्तर दिया, पर वह यह देखने के लिए छटपटा रही थी कि सिलास को क्रोध आये, उसकी भावनाओं का बांध टूटे, आपे-से बाहर हो जाये। पर वह जानती थी कि ऐसा नहीं होगा।

‘‘तुम्हारे मापदण्ड के अनुरूप नहीं निकला मैं, सच है न? न तो धन-दौलत और न गरीबी। न तो खलनायक और न नायक।’’

‘‘ठीक है, ठीक है, चलो सोने चलते हैं,’’ माइरा एकाएक कटु स्वर में बोली।’’

‘टाइम्स’ अखबार में लिखा था: ‘‘ऊंचा कद; ढीले-ढाले अंग; दूर की नजर कमजोर; सूखे रंगों से तैयार की गयी पुराने फैशन की एक ऐसी तस्वीर, जिसे देखकर लगे कि यह तो अध्यापक हो ही नहीं सकता; प्रोफेसर सिलास टिम्बरमन को देखकर यह सोचना भी कठिन है कि ऐसे व्यक्ति का कभी कोई विध्वंसकारी इरादा रहा हो।’’

सुबह जब प्रोफेसर की आंख खुली, तो पानी बरस रहा था, हल्की, शरीर में झुरझुरी पैदा करने वाली अप्रिय फुहारें, और जिन्हें तेज और फुफकारें मारती तेज हवा के झोंके रुक-रुक कर चारों ओर बिखेर रहे थे। उसने मन ही मन कहा: ‘‘शुक्र है खुदा का, आज कोई मीटिंग होने नहीं जा रही है।’’ घर से रवाना होने तक बारिश थम गयी थी, लेकिन बाहर खूब ठंड थी, आकाश धुंधला था, तेज हवा चल रही थी।

‘द ट्रिब्यून’ अखबार में भी घबराहट का स्वर था लेकिन बहुत ज्यादा घबराहट का नहीं: ‘‘यह महसूस कर राहत मिलती है कि इस तरह का अहमकपन अमरीका के लिए कोई नयी बात नहीं है। मुक्त हंसी ऐसी बीमारी का बहुत बढ़िया इलाज है। और यह याद रखना जरूरी है कि यह विध्वंसकों के विरुद्ध किसी असल और जरूरी मुहिम की सेवा नहीं है।’’

वह सुसान एलन से मिला। ‘‘क्या आज का यह मौसम मन को रिझाने वाला नहीं है,’’ सुसान एलन उल्लासभरे स्वर में बोली। ‘‘क्या तुम्हारा मन-चित्त ऐसी प्रचण्ड हवा के साथ उछलकर बल्लियों ऊपर नहीं पहुंचता? इस तरह के दिन पर तो मैं लट्टू हो जाती हूं। ऐसे दिन किसी और चीज के बजाय मेरा मन सीगल (समुद्री पक्षी) देखने के लिए ललचाया करता है।’’

‘‘तुम और बॉब आज मीटिंग में तो आ रहे हो न?’’ उसने सुसान एलन से पूछा।

‘‘बेशक आऊंगी। कम्युनिज्म से चाहे कितनी ही नफरत क्यों न हो, पर, सिलास, जब बेचारे प्रोफेसर एम्सटर्डम का ख्याल आता है – और यह सब इतने दिनों बाद – तो गुस्सा तो आता ही है और विरोध प्रकट करने की इच्छा होती है।’’

‘द सेंट लुई पोस्ट’ अखबार ने, जिसका दफ्तर इस हलचलभरी घटना के समीप था, दूसरों से ज्यादा विषादपूर्ण दृष्टिकोण अपनायाः ‘‘जहां तक हमारा ताल्लुक है, हम महसूस करते हैं कि मार्क ट्वेन की राजनीति के बारे में रिपोर्ट बहुत अतिरंजित हैं पर हम क्लेमिंग्टन के साहित्यिक निर्णयों से चाहे सहमत हों या न हों, फलक्रम से उसके छात्र-सम्पादक एल्विन मोर्स के हटाये जाने का समर्थन करना कठिन है। कालेजी अखबारी दुनिया में फलक्रम का सम्मानजनक स्थान है और बहुत से प्रतिष्ठित पत्रकारों ने पहले-पहल इसी के पन्नों में काम करना शुरू किया था। एल्विन मोर्स का कसूर हद से हद यह हो सकता है कि उसने सम्पादकीय निर्णय लेने की अयोग्यता का परिचय दिया। परन्तु कालेजी अखबारों की स्वतंत्रता इस बात का तकाजा करती है कि छात्र-सम्पादकों को गलतियां करने दी जायें और उन्हें अपनी गलतियों पर खेद की भावना झेलने दी जाये।’’

सिलास के पहुंचने से पहले ही लारेंस काप्लिन दफ्तर में मौजूद था। उसने अनुभव किया कि सिलास के चेहरे पर कोई खास खुशी नहीं दिखायी दे रही है।

‘‘लगता है, माइरा के साथ झगड़ा मेरे मूड के खराब होने का सबसे बड़ा कारण है,’’ सिलास ने कहा। वह इतना उद्वेलित था कि उसने किसी और से ऐसे मसलों पर चर्चा न करने के अपने उस नियम का उल्लंघन किया था, जिसका वह लम्बे अरसे से पालन करता आया था। ‘‘लगता है, माइरा को समझने में अधिकाधिक असमर्थ होता जा रहा हूं।

‘‘बात यह है कि हम सब उन नारियों को समझने में उत्तरोत्तर असमर्थ होते जाते हैं, जिनसे हम विवाह के सूत्रों में बंधे होते हैं। परन्तु अपने पति के प्रति पत्नी के साथ भी ऐसा ही होता है। यह कोई महज घिसी-पिटी बात नहीं है। अन्य क्षेत्रों की ही तरह यहां भी हम जो बोते हैं, वही फसल पाते हैं। दोपहर बाद से तुम्हारे शब्द सुनने का इंतजार कर रहा हूं मैं। मुझे आशा है कि मीटिंग बड़ी होगी; विषाद के वातावरण को मिटाने के लिए काफी बड़ी होगी!’’

‘‘मेरे अनुमान से भी काफी बड़ी,’’ काप्लिन ने मुस्कुराते हुए पर कुछ उदास भरे स्वर में कहा।

शिकागो के प्रमुख प्रादेशिक अखबार के पास खुशी मनाने का कारण है। ‘‘यह देखने से बहुत सन्तोष मिलता है कि क्लेमिंगटन के प्रेजीडेंट एंटनी सी- कैबट की स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया कितनी तीक्ष्ण रही, जो अन्यथा घोर असुखद सिद्ध हो जाती। फलक्रम के पहले अंक में उनका यह बयान कि वह क्लेमिंग्टन के संकाय के लिए वफादारी की शपथ की व्यवस्था का स्वागत करेंगे, गलतफहमियों के वातावरण को मिटाने में मदद देता है। हम तो नये सम्पादक के मातहत तमाम सरकारी शिक्षा संस्थानों के तमाम अध्यापकों के लिए और क्लेमिंग्टन की तरह के करों से छूट पाने वाले तमाम संस्थानों में भी वफादारी की शपथ लागू करने के लम्बे अर्से से पैरवीकार रहे हैं। यह दावा करना तो कीचड़ उछालना है कि वफादारी की शपथ लेना मुक्त शिक्षा से मेल नहीं खाता। जो व्यक्ति अपने देश के प्रति वफादारी की शपथ लेने से इंकार करता है, विध्वंसकारी घोषित किसी भी संगठन का सदस्य न होने की शपथ नहीं लेता, वह हमारे राष्ट्र के बच्चों को पढ़ाने के योग्य नहीं है।’’

‘‘कितना लम्बा अर्सा गुजर चुका है, जब मैं रटे-रटाये ढंग से पढ़ाता था, अपनी क्लासों में यंत्रवत पहुंचा करता था – कितना अर्सा गुजर चुका है’’, सिलास ने अपने से पूछा। ‘‘क्या दो ही हफ्ते, महज दो हफ्ते?’’ वह सोच रहा था।

और गलियारे में उसकी एड लिंडफेस्ट से मुलाकात हुई। दोनों के पांव एक क्षण के लिए रुके, दुआ-सलामत करने से पहले खामोशी से एक-दूसरे को देखते रहे। पर दुआ-सलामी करना तो जरूरी था। आखिर लोग सभ्यता के भव्य-भवन के अन्दर ही तो जीते हैं।

‘‘हैलो, ऐड’’ सिलास ने आखिर खामोशी तोड़ते हुए कहा।

लिंडफेस्ट ने हल्के सिर नवाया और आगे बढ़ गया।

‘‘लगता है, आज कोसा जाने वाला हूं,’’ सिलास मन में बोला और उस दिन वह पहली बार मुस्कराया।

पूर्वी प्रदेश के ‘मिरर’ अखबार ने अपनी बात बिना किसी लाग-लपेट के और भावपूर्ण ढंग से पेश की: ‘‘हमारे दिल में किसी भी जगह के कौमीज (कम्युनिस्टों से नफरत करने वाले लोगों द्वारा उनके लिए प्रयुक्त फिकरा-अनु.) के प्रति लेशमात्र मृदुभाव नहीं है और स्कूलों में तो उनकी उपस्थिति हम और भी कम पसन्द करते हैं। फिर ऐसी भी तो कोई चीज नहीं है, जिसे बच्चे कौमीज से सीखें। उन्हें जितनी जल्दी हमारी शिक्षा-प्रणाली से बाहर धकेल दिया जाये, हमारे लिए उतना ही ज्यादा अच्छा होगा, भले ही इस प्रक्रिया में चंद संवेदनशील आत्माओं को ठेस लगे। जहां तक मार्क ट्वेन का सरोकार है, हम यह भविष्यवाणी करने का साहस करते हैं कि वह इस घटना-प्रवाह को झेल जायेंगे।’’

जब सिलास दोपहर बाद दो बजे ह्निट्टियर हाल से बाहर निकला, तो वहां माइरा अप्रत्याशित रूप से उसका इन्तजार कर रही थी। वह उसे देखकर मुस्करायी, सिलास ने भी हल्के ढंग से मुस्कान का जवाब दिया। यह क्षणभर के लिए दुबारा तरुणाई की दुनिया में लौटना था, यह प्रेम-परिणय की भावनाओं का फिर जग उठना था, उस व्यक्ति की झलक और ध्वनि में विलय हो जाना था, जिससे प्यार किया जाता है।

‘‘मैंने सोचा, तुम्हें किसी के संग की जरूरत होगी,’’ माइरा बोली।

‘‘ऐसा सोचा तुमने?’’ सिलास ने पूछा।

‘‘हूं… तुम्हारा बयान कैसा है, कुछ लिखकर लाये हो?’’

‘‘नहीं, पर मैं काम चला लूंगा। चंद शब्द बोलूंगा, सब ठीक रहेगा। तुम आयी, मुझे खुशी हो रही है।’’

उन्होंने एक-दूसरे की बांह में बांह डाली। अब बारिश नहीं हो रही थी। परन्तु ठंड थी और हवा तेज चल रही थी। आकाश मटमैले-से बादलों से ढंका था। अगल-बगल के लॉनों और उनके बीच के रास्तों में बिछी हुई थी सड़ और गल चुकी पत्तियां, घास की गीली गलीचानुमा क्यारियों पर नाचती, झूमती ताजा पत्तियां। वे ह्निट्टियर हाल के पास खड़े थे परन्तु पूरे कैम्पस में दूर-दूर तक जहां तक नजर दौड़ सकती थी, वे यूनियन प्लाजा में खड़े गृहयुद्ध के स्मारक के चारों ओर छात्रों के झुंड एकत्र होते देख सकते थे। परन्तु उनके अलावा भी सैकड़ों अन्य छात्र थे, जो कैम्पस में आड़ी-तिरछी कतारों में चल रहे थे। उनके चेहरों पर बेफिक्री साफ नजर आ रही थी। तब सिलास ने महसूस किया कि उसकी जिन्दगी में इतनी गहरी घटनाओं ने इसी जगह दूसरे बहुत-से लोगों को अछूता, उदासीन छोड़ दिया है। क्या सर्वत्र, पूरे देश में ऐसा ही हो रहा है; क्या हरेक अपने-अपने क्षुद्र संतापों में अकेले खड़ा है?

‘‘वे यह नहीं समझ पा रहे हैं और उन्हें इसकी परवाह नहीं है कि खतरे की यह घंटी किसके लिए बज रही है,’’ सिलास मन ही मन सोच रहा था। फिर उसे याद आया कि चन्द हफ्ते पहले वह भी तो उनकी ही तरह कोई परवाह नहीं किया करता था। ‘‘तुम अपनी ढपली बजाओ, मैं अपनी।’’

माइरा ने उसके चेहरे पर विषाद की छाया देखी और उसे सदमा-सा लगा।

‘‘सिलास!’’

‘‘कुछ नहीं, कुछ नहीं,’’ सिलास बोला और वह मुस्कराया, जिसमें कोई बनावटीपन नहीं था। एक वक्त था, जब कोई मनोभाव एक लम्बे अर्से तक, स्थायी रूप से, समतल ढंग से उसके दिलो-दिमाग पर छाया रहता था। लेकिन इधर उसे कई चीजों ने झकझोर दिया और नतीजतन एक तरह का मनोभाव पैदा होता और गायब हो जाता, उसका स्थान दूसरा मनोभाव ले लेता।

‘‘कैसा महसूस कर रहे हो?’’ माइरा ने पूछा।

‘‘तुम जानती हो, क्या महसूस कर रहा हूं-ऐसा महसूस कर रहा हूं मानो हम दोनों अभी-अभी मिले हैं और मैं तुमसे प्यार करता हूं और मुझे डर लगता है कि इस प्यार का प्रतिदान नहीं कर पाऊंगा। ऐसा महसूस कर रहा हूं।’’

‘‘यह तो सबसे ज्यादा मनमोहक बात है, जो तुमने एक लम्बे, बहुत लम्बे अर्से के बाद मुझसे कही है, सिलास’’ माइरा बोली, फिर भी वह चिन्ताभरी दृष्टि से देख रही थी। ‘‘कल रात जो हुआ, उसके लिए मुझे अफसोस है। मेरे बारे में चिन्ता मत करो, सिलास। क्या तुम यह नहीं समझते कि मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगी? मैं तुम्हारे साथ-साथ रहूंगी।’’ वे बांह में बांह डाले कैम्पस में आगे बढ़ते रहे, हवा अधिकाधिक ठंडी होती जा रही थी, अधिकाधिक उग्र रूप धारण करती जा रही थी। ‘‘यह तो मीटिंग के लिए अच्छा लक्षण नहीं है। ठीक कहा मैंने,’’ माइरा ने पूछा।

‘‘पता नहीं,’’ सिलास ने जवाब दिया और सच्ची बात तो यह है कि ऐसी चीजों के बारे में वह बहुत कम या बिलकुल ही नहीं जानता था। उसे तो यह भी पता नहीं था कि खुले आकाश के नीचे विरोध-सभा से क्या अपेक्षा की जा सकती है – फिर भी एक दुनिया ऐसी थी, जहां कुछ भी आसानी से, नरमी से हासिल नहीं होती, जहां हर चीज के लिए लड़ना पड़ता है, जहां बार-बार लोगों के कंधा से कंधा मिलाना पड़ता है, क्योंकि उनके पास अपनी तादाद, अपने सैकड़ों नंगे हाथों, एक साथ रोष भरा स्वर बुलन्द करने के अलावा और कोई ताकत नहीं है। ज्यों-ज्यों वे प्रदर्शन के लिए जमा हो रहे छात्रों की भीड़ और फैकल्टी की सभा-स्थली के समीप पहुंच रहे थे, माइरा का दिल अप्रत्याशित ढंग से बल्लियों ऊपर उछल पड़ा; आकाश और हवा का अनियंत्रित बीहड़ फैलाव मानो उसके कदम से कदम मिलाना चाहता हो, यौवन, शक्ति और गर्व की भावना उसके मन में हिलोरें ले रही थी, उसमें एक विचित्र प्रकार का उल्लास पैदा कर रही थी, इस कारण उसने अपनी बाहों से सिलास की कमर को कस कर घेर लिया, अपने शरीर को उसके शरीर से सटाते हुए चलने लगी। उधर सिलास का दिमाग विचरण कर रहा था पीछे छूट चुकी अपनी जवानी के दिनों की यादों के गलियारे में: छोटा-सा, मौसम की बुरी तरह थपेड़ें खाया हुआ जर्जर मकान; यहां से पिता पैदल आरा मिल में काम करने जाया करते थे; उसके बाद दूसरी मिल में, फिर उसके बंद होने पर तीसरी मिल, रिहायश के लिए एक के बाद दूसरा घर; वृक्ष कटने के कारण नंगी पड़ी धरती; इस पर चलता पिता, थकी-मांदी कमर झुकी हुई, काम के बोझ से टूटी हुई कमर, जिसके पास अपने बेटे के अलावा, जो हाथों के श्रम के नहीं वरन अपने ज्ञान की सम्पदा के बल जीविका चलायेगा, और कोई गर्व योग्य वस्तु या सम्पदा नहीं थी।

जब सिलास गृहयुद्ध के स्मारक के नीचे चौड़े प्रस्तर से बने चबूतरे पर बोलने के लिए खड़ा हुआ, तो उसके पीछे खड़ी थी एक पत्थर की मूर्ति, उस व्यक्ति की मूर्तिं, जिसके चेहरे पर दाढ़ी थी, करुणामय, बहुत ऊंची, कृत्रिमता से मुक्त, बाजू एक घायल लड़के को सहारा दिये हुए-कितने अचरज की बात है कि यह दृश्य याद दिला रहा था कि वे लड़ाइयां लड़ी थीं लड़कों ने। बोलने के लिए खड़े सिलास को पता था कि उसे क्या कहना है, हालांकि सिर्फ चन्द क्षण पहले उसके सचेतन मन को भी इसका पता नहीं था। वह खड़ा था माइक्रोफोन के सामने, मुंह उठाये हुए लगभग एक हजार व्यक्तियों पर नजर दौड़ाता हुआ। शुरू-शुरू में वह बहुत घबराया हुआ था, हाथ जेबों के अंदर थे, हथेलियां पसीने से गीली थीं, कालर तक गीला हो गया लगता था। पर तब घबराहट मिट गयी और वह अब बिलकुल स्थिरचित्त हो गया था। उसे देखते और सुनते हुए माइरा और दूसरे बहुत-से लोगों के लिए यह प्रत्यक्ष था कि विशाल, पुरानी प्रस्तरीय मूर्तिं के मानों चौखट के बीच खड़ी ऊंचे कद की, सौम्य मुखाकृति वाली, प्रचण्ड आकाश के नीचे हवा के झोंकों के बीच खड़ी यह सचमुच रोमांचकारी, अविस्मरणीय आकृति थी। वह तर्क और विवेक के दम तोड़ रहे इस युग में खुद तर्क और विवेक का जीता-जागता प्रतीक थी। परन्तु जहां तक स्वयं सिलास का सवाल था, उसका मन एक-दूसरे से टकराते और गड्डमड्ड होते विचारों के समाधान की अपनी ही तलाश पर केन्द्रित था। और इस तरह वह जब बोल रहा था, तो उसने अतीत को आत्म-दाह करने दिया, हालांकि उसे इस बात का आभास था कि भविष्य बहुत ही संदिग्ध है। अभी तक उसका कोई रूप तक नहीं बना है। वह बहुत धीमी गति से, शान्त भाव से बोल रहा था, पर जिस ढंग से छात्रों के हाथों से तैयार ध्वनि-प्रसारक यंत्र उसकी आवाज को प्रक्षेपित कर रहा था, उस पर उसे एक तरह अचरज हो रहा था, खुशी हो रही थी। और ज्यों-ज्यों वह बोलता चला गया, उसकी आवाज अधिक तीक्ष्ण, अधिक कठोर होती गयी। पर उसने शुरू-शुरू में बड़े शान्त भाव से कहा:

‘‘आज तक मैं काफी अकेलापन महसूस कर रहा था। आसपास चंद दोस्त जरूर हुआ करते थे, पर वे इतने नहीं थे कि मुझे अकेलापन महसूस करने से रोक पाते। अब मैं आगे से अकेला नहीं रहूंगा। मुझे नहीं मालूम कि इस शर्मनाक काण्ड का अन्त कैसे होगा। फिर भी अगर कैम्पस में आगे चलकर आज जितनी बड़ी, दिल में जोश पैदा करने वाली ऐसी मीटिंग न भी हो, तब भी मुझे हमेशा याद रहेगा कि हमारे सैकड़ों छात्रों के पास अपनी-अपनी भावनाएं मुखरित करने के लिए आवाज और अनुभव करने के लिए हृदय हैं।

‘‘पिछली रात मैं सोच रहा था कि मैं अपने दोस्त प्रोफेसर एम्सटर्डम के बारे में बोलूंगा। उनका स्थान मेरे हृदय में है, मैं उन्हें प्यार करता हूं, उनका सम्मान करता हूं। परन्तु उनकी पैरवी करना मेरे लिए अशोभनीय होता। उन्हें इसकी जरूरत भी नहीं है कि कोई उनकी पैरवी करे, इज्जतदार आदमियों को किसी से चरित्र-प्रमाणपत्र की कभी आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके बजाय मैं उस कार्रवाई की तह में मौजूद चीज के बारे में बोलना चाहता हूं, जो उनके खिलाफ की गयी है। मैं बोलना चाहता हूं देश के एक छोर से दूसरे छोर तक फैल रहे भय और आतंक के संज्ञाहीन बनाने वाले बादलों के बारे में।

‘‘यह अजीब-सी स्वेच्छाचारिता है, बेशक स्वेच्छाचारिता है। हममें से अधिकांश मानने को तैयार नहीं होंगे कि यह स्वेच्छाचारिता है और इस तरह उन्हें उसका सामना नहीं करना पड़ेगा। यह ऐसी स्वेच्छाचारिता है, जिसके साथ जीना आसान है, क्योंकि वह एक ही कीमत मांगती है – आत्मसम्मान और विवेक को दूसरों के चरणों में समर्पित कर देना और ऐसा लग रहा है कि हम तेजी से उस जगह पहुंच रहे हैं, जहां विवेक के प्रति केवल घृणा-तिरस्कार का भाव होगा और आत्म-गौरव के बारे में बाबा आदम के जमाने की समझ होगी। यह मैं विनम्र स्वर से कह रहा हूं, क्योंकि चंद हफ्ते पहले तक मैं उन लोगों में से था, जो कठोरतापूर्वक इस बात से इंकार करते थे कि इस देश में स्वेच्छाचारिता विद्यमान है, कि मैं भी अपनी उसी शिक्षा की प्रक्रिया का अंग हूं, जिसे आप सब, सच तो यह है कि पूरी दुनिया अब तक जान गयी है और जो हमारे लिए चुल्लू भर पानी में डूब मरने की बात है।

‘‘अब फैकल्टी के एक पुराने, श्रद्धास्पद सदस्य को मुअत्तल कर दिया गया है। मुझे पता है कि मानवजाति मनुष्यों के प्रति क्रूरता बरतने के साधन ईजाद करने में अत्यन्त प्रवीण है। इसलिए किसी अध्यापक की सार्वजनिक तौर पर बर्खास्तगी और अपमान ऐसे सबसे कुत्सित दंड नहीं हैं, जिन्हें मनुष्य को भुगतना पड़ सकता है। पर जरा सोचिये तो, इसका अर्थ क्या है? यह तो मनुष्य के शरीर के उस भाग की मृत्यु है, जो उसका सर्वोत्तम अंग है, शायद वह अंग है, जिसे वह दूसरों को सौंप सकता है, ताकि उसके जीवन का कुछ अर्थ हो, उपयोग हो। और यह सोचना निस्संदेह भोलापन है कि इस तरह से उस मुअत्तिल अध्यापक को, जिसके सिर पर तथाकथित राजनीतिक-नैतिक बादल मंडराता रहे, किसी दूसरे स्कूल में आसानी से जगह मिल जायेगी। नहीं मिल सकती। तब वह विदा हो सकता है, यह दिखावा कर सकता है कि वह अपने संस्मरण लिख रहा है, होरेस की कृतियों का नये सिरे से अनुवाद कर रहा है। वह यह तब ही कर सकता है, जब आर्थिक दृष्टि से उसकी स्थिति मजबूत हो। और अगर ऐसा नहीं है – और सवाल उठता है कि किसी अध्यापक के पास क्या दौलत-सम्पत्ति है – तो वह नौकरी की तलाश में चक्कर काटते हुए अपने जूते के तले घिस सकता है, इस उम्मीद में कि कोई उसे अपने यहां रख लेगा।

‘‘यह मैं किसी प्राचीन ज्ञान को पेश नहीं कर रहा हूं। यह तो मैंने संतापभरे दो हफ्तों में सीखा, परन्तु ऐसे आधार पर टिक कर सीखा, जो अस्तित्वमान था और मैं आपसे कहना चाहता हूं कि वह अमरीका में हर अध्यापक के लिए विद्यमान है। हम भय के बीच जी रहे हैं, भय के बीच काम कर रहे हैं और हममें से अधिकांश जोर से चीखते हैं और भी ज्यादा जोर से चीखते हैं कि हम डरते नहीं हैं। यह जो हमारा शक्तिशाली कवच है, दरअसल कागजी कवच है, और कुछ नहीं। यह सब हम हिटलर के जर्मनी में देख चुके हैं।’’

किसी ने उसे यहां टोका। इस मौके पर कोई जोरों से, कर्कशपूर्ण परन्तु बिल्कुल साफ-साफ ढंग से चिल्लाया: ‘‘और सोवियत रूस में?’’

सिलास रुक गया, उसके विचारों की श्रृंखला टूट गयी, उसका शरीर एकाएक ऐसा सख्त हो गया लगता था, मानो उसे पक्षाघात हो गया हो; शरीर का तनाव फिर धीरे-धीरे परन्तु पीड़ादायी ढंग से ढीला होना शुरू हुआ। वह जो कुछ बाकी बोलना चाहता था, उसके मस्तिष्क से लुप्त हो गया और कहने के लिए बस ये चंद शब्द ही बाकी रहेः ‘‘मैं सोवियत रूस के बारे में कुछ नहीं जानता। और अमरीका के बारे में तो बहुत ही कम जानता हूं, बहुत ही क्षुद्र मात्र में जानता हूं।’’

माइरा ने उसे बताया कि उसका वक्तृत्व अच्छा रहा, बहुत अच्छा रहा-दो टूक ढंग का, सुस्पष्ट, बिल्कुल मुद्दे की बात और साफगोई, जैसा कि उत्कृष्ट भाषणों के मामले में होता है। पर वह अपने मन पर पड़ी यह पक्की छाप नहीं मिटा सका कि वह नाकामयाब रहा है। वह बहुत कम बोला और जितना कुछ बोला, अच्छी तरह नहीं बोल पाया। वह आइक एम्सटर्डम की बहाली की पैरवी नहीं कर सका हालांकि उसका आखिर तो यही करने का इरादा था। और वह एलन मोर्स के बारे में भी एक शब्द नहीं बोल पाया। फिर मानो विचार ने कोई जादू कर दिया हो और मोर्स भीड़ को चीरते हुए उसके पास पहुंच गया। साथ में हार्टमन स्पेंसर और दो अन्य छात्र भी उसके साथ आये।

‘‘मैं आपका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं,’’ मोर्स ने खुले भाव पर संजीदे ढंग से सिलास से कहा। ‘‘यह हिम्मत की बात थी।’’ सिलास ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया कि मोर्स का कद कितना छोटा है, चेहरा देखने में कितना मुरझाया हुआ है और उस पर क्लेश की छाप है, मानो चार्ल्स डिकेन्स की पुस्तक से बाहर निकला हो, सिर एक ओर ऐसे झुका हुआ जैसे उसे जोर लगाना पड़ रहा हो। हूबहू क्रुइकशांक (क्रुइकशांक: शुरुआती पूंजीवाद के बर्बर शोषण को दर्शाने वाले चार्ल्स डिकेंस के उपन्यासों का चित्रंकन करने वाले अंग्रेज चित्रकार) की चित्रमाला के पात्र की तरह। वह आकर्षक नहीं था, उसके बारे में दो बार सोचना पड़ता, तब कहीं यह नजर आता कि उसकी आंखों में आग की कैसी लपटें हैं, उसके शरीर में कितनी उत्कण्ठा और तनाव है। उसके बाद तो उसे पसन्द किये बिना, उसका प्रशंसक हुए बिना नहीं रहा जा सकता था। पहले लेनोक्स और फिर मोर्स-तब सिलास के दिमाग में यह विचार उठा कि क्लेमिंग्टन में इतने साल गुजारने पर भी उसने छात्रों को आज से पहले कभी नहीं पहचाना था, कम से कम इस तरह तो नहीं, कि दो मनुष्य बिल्कुल रू-ब-रू, उनके बीच कोई मंच नहीं। वह मोर्स को समझाने लगा कि उसने ‘फलक्रम’ से उसके हटाये जाने के बारे में कुछ क्यों नहीं कहा। मोर्स ने सिर हिलाया।

‘‘बात वह नहीं है, सर। आपने जो कहा, वह बिल्कुल कांटे की बात थी। मुझे तो कोई खतरा नहीं है, पर आपको है, सर।’’

दायित्वबोध, वर्ष 7, अंक 3, जनवरी-मार्च 2001

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × two =