आपकी बात
‘दिशा सन्धान’ काफ़ी अन्तराल पर निकल रहा है लेकिन हर अंक विचार और सामग्री की दृष्टि से बेहद समृद्ध है। कम्युनिस्ट आन्दोलन का लम्बे समय से शुभचिन्तक होने के नाते मैं इसकी वर्तमान स्थिति से व्यथित हूँ लेकिन मैं आपके इस विश्लेषण से असहमत होने का कोई आधार नहीं पाता कि आन्दोलन की मूल समस्या वैचारिक-सैद्धान्तिक है। इसके बावजूद पॉलिमिक्स पर ध्यान न देना और वाद-विवाद-संवाद को सही स्पिरिट में न लेना अखरता है। आशा है आपका यह प्रयास ठहराव को तोड़ेगा। मेरी शुभकामनाएँ।
एस.सी. रावत, जयपुर
‘दिशा सन्धान’ के अब तक प्रकाशित चारों अंक पढ़ चुका हूँ। हिन्दी समाज में ऐसी गम्भीर पत्रिका की निश्चय ही ज़रूरत है, विशेषकर जब सैद्धान्तिकी पर इतना कम ध्यान दिया जा रहा है, या फिर सिद्धान्त के नाम पर तमाम तरह का आयातित कचरा परोसा जा रहा है। भारत के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन के इतिहास और सोवियत इतिहास पर दोनों लेखमालाएँ बहुत श्रमसाध्य शोध के साथ लिखी गयी हैं और अपार तथ्यों के साथ गहन विश्लेषण भी प्रस्तुत करती हैं। बेहद विचारोत्तेजक। समकालीन विषयों पर आपकी टिप्पणियाँ भी बहुत संजीदगी और मेहनत के साथ लिखी गयी होती हैं। कृपया इसकी आवर्तिता बढ़ाने का प्रयास करें।
राजशरण वर्मा, कानपुर
मैं ‘दायित्वबोध’ का पुराना पाठक रहा हूँ और मेरा मानना है कि उसके बन्द होने से आन्दोलन की बहुत क्षति हुई। लेकिन ‘दिशा सन्धान’ ने न केवल उसकी कमी पूरी की है बल्कि यह उससे कहीं अधिक समृद्ध पत्रिका है। हालाँकि शायद इससे इसका दायरा कुछ सीमित हुआ होगा। लेकिन मार्क्सवादी विचारधारा पर ऐसे गम्भीर विमर्श के मंच की आज सख़्त ज़रूरत है। बेशक यह पत्रिका ‘मशीन मेकिंग मशीन’ का भी काम करेगी, यानी ऐसे लेखक और कार्यकर्ता तैयार करने का, उनकी वैचारिक समझ को और समृद्ध करने का काम करेगी भी जो इन विचारों को जन-जन तक अपनी भाषा में लेकर जायेंगे। आज सर्वहारा अधिनायकत्व और कम्युनिज़्म के मूल सिद्धान्तों पर तरह-तरह के वैचारिक हमलों ने जैसा धूलगर्द का बवण्डर खड़ा किया है, उसे साफ़ करके मार्क्स, लेनिन और माओ की शिक्षाओं को सही रूप में लोगों तक पहुँचाने के लिए ऐसी पत्रिका की अत्यन्त आवश्यकता है। आज अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक धाराएँ मार्क्स-एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ के बुनियादी उसूलों को तोड़ने-मरोड़ने में लगी हैं। इनका प्रतिवाद करने और देश के भीतर प्रासंगिक प्रश्नों पर बहस को दिशा देने में हमें आपकी पत्रिका से बहुत अपेक्षाएँ हैं।
श्रीकृष्ण त्यागी, दिल्ली
दिशा सन्धान – अंक 5 (जनवरी-मार्च 2018) में प्रकाशित