उद्धरण : दिशा सन्धान – अंक 1  (अप्रैल-जून 2015)

लुकाच

यह सच है कि हमारी संस्कृति इस समय अँधियारे के बीच से गुज़र रही है, परन्तु इतिहास-दर्शन के ऊपर यह दायित्व है कि वह इस बात का निर्णय ले कि जो अँधियारा इस समय छाया हुआ है वह हमारी संस्कृति की, और हमारी अन्तिम नियति है, अथवा भले हम तथा हमारी संस्कृति एक लम्बी, अँधेरी सुरंग के बीच से गुजर रहे हों, अन्ततः हम उससे बाहर आयेंगे और प्रकाश के साथ हमारा साक्षात्कार एक बार फिर होगा। बुर्जुआ सौन्दर्यशास्त्रियों का विचार है कि इस अँधियारे के चंगुल से उबरने का कोई भी रास्ता शेष नहीं बचा, जबकि मार्क्सवादी इतिहास-दर्शन मनुष्यता के विकास की व्यवस्था के क्रम में हमें यह निष्कर्ष देता है कि ऐसा हो ही नहीं सकता कि मनुष्य की यह विकासयात्र निरुद्देश्यता या निरर्थकता में ही समाप्त हो जाये। वह एक निश्चित, सार्थक गन्तव्य तक अवश्य पहुँचेगी।

 डी.डी. कोसाम्बी

“मार्क्सवाद को गणित की तरह एक अनमनीय रूपवाद में अपचयित नहीं किया जा सकता और न ही इसे स्वचालित लेथ मशीन पर काम करने जैसी मानक तकनीक के तौर पर लिया जा सकता है। मानव समाज में प्रस्तुत होने वाली सामग्री में अन्तहीन विविधताएँ होती हैं; प्रेक्षक स्वयं प्रेक्षित की जा रही आबादी का एक भाग होता है, ज़िसके साथ वह पुरज़ोर ढंग से और परस्पर अन्तर्क्रिया करता है। इसका अर्थ यह हुआ कि सिद्धान्त को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए विश्लेषणात्मक शक्ति, और किसी स्थिति में मूलभूत विशिष्टताओं को पहचानने की क्षमता का विकास करना आवश्यक होता है। इसे सिर्फ पुस्तकों से नहीं सीखा जा सकता। इसे सीखने का एकमात्र तरीका जनता के व्यापक तबकों के साथ निरन्तर सम्पर्क ही है।”

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (जर्मन चिन्तक, कवि, नाटककार)

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“सबसे निकृष्ट अशिक्षित व्यक्ति वह होता है जो राजनीतिक रूप से अशिक्षित होता है। वह सुनता नहीं,बोलता नहीं, राजनीतिक सरगर्मियों में हिस्सा नहीं लेता। वह नहीं जानता कि ज़िन्दगी की क़ीमत, सब्जियों, मछली, आटा, जूते और दवाओं के दाम तथा मक़ान का किराया – यह सब कुछ राजनीतिक फैसलों पर निर्भर करता है। राजनीतिक अशिक्षित व्यक्ति इतना घामड़ होता है कि इस बात पर घमण्ड करता है और छाती फुलाकर कहता है कि वह राजनीति से नफ़रत करता है। वह कूढ़मगज़ नहीं जानता कि उसकी राजनीतिक अज्ञानता एक वेश्या, एक परित्यक्त बच्चे और चोरों में सबसे बुरे चोर – एक बुरे राजनीतिज्ञ को जन्म देती है जो भ्रष्ट तथा राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का टुकड़खोर चाकर होता है।”

 

दिशा सन्धान – अंक 1  (अप्रैल-जून 2013) में प्रकाशित

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