Tag Archives: बेर्टोल्ट ब्रेष्ट

उद्धरण : दिशा सन्धान-2, जुलाई-सितम्बर 2013

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट (‘सच लिखने के बारे में पाँच कठिनाइयाँ’)

जो लोग पूँजीवाद का विरोध किये बिना फ़ासीवाद का विरोध करते हैं, जो उस बर्बरता पर दुखी होते हैं जो बर्बरता के कारण पैदा होती है, वे ऐसे लोगों के समान हैं जो बछड़े को जिबह किये बिना ही मांस खाना चाहते हैं। वे बछड़े को खाने के इच्छुक हैं लेकिन उन्हें ख़ून देखना नापसन्द है। वे आसानी से सन्तुष्ट हो जाते हैं अगर कसाई मांस तौलने से पहले अपने हाथ थो लेता है। वे उन सम्पत्ति सम्बन्धों के ख़िलाफ़ नहीं हैं जो बर्बरता को जन्म देते हैं, वे केवल अपने आप में बर्बरता के ख़िलाफ़ हैं। वे बर्बरता के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं, और वे उन देशों में ऐसा करते हैं जहाँ ठीक ऐसे ही सम्पत्ति सम्बन्ध हावी हैं, लेकिन जहाँ कसाई मांस तौलने से पहले अपने हाथ धो लेता है।

कार्ल मार्क्‍स (लूई बोनापार्त की अठारहवीं ब्रूमेर)

उन्‍नीसवीं शताब्‍दी की सामाजिक क्रान्ति अतीत से नहीं वरन भविष्‍य से ही अपनी प्रेरणा प्राप्‍त कर सकती है। वह उस समय तक अपना समारम्‍भ नहीं कर सकती जब तक अतीत सम्‍बन्‍धी अपने सभी मूढ़ विश्‍वासों को दूर न कर ले। पहले की क्रान्तियों को स्‍वयं अपनी अन्‍तर्वस्‍तु के सम्‍बन्‍ध में अपने को मदहोश करने के लिए विगत विश्‍व इतिहास की स्‍मृतियों की आवश्‍यकता पड़ती थी। उन्‍नीसवीं शताब्‍दी की क्रान्ति के लिए जरूरी है कि अपनी अन्‍तर्वस्‍तु प्राप्‍त करने के लिए जो बीत गया है, उसे भुला दे। पहली क्रान्तियों के नारे उनकी अन्‍तर्वस्‍तु से आगे निकल गये थे, यहां अन्‍तर्वस्‍तु नारों से आगे निकल जाती है।

दिशा सन्धान – अंक 2  (जुलाई-सितम्बर 2013) में प्रकाशित

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट – दुख के कारणों की तलाश का कवि

मार्क्सवाद के प्रति ब्रेष्ट की प्रतिबद्धता ने उन्हें लिखने की गहरी आकुलता दी और साथ ही एक ऐसा सशक्त विश्व दृष्टिकोण भी दिया, जिसके ज़रिये वह दुनिया में जो कुछ घट रहा है, उसका वैज्ञानिक सर्वेक्षण-विश्लेषण साफ़-साफ़ करने में कामयाब रहे। इसी के साथ उनके भीतर एक मानवीय कवि की जो ईमानदारी और छटपटाहट थी, उसने उन्हें चरित्रों के जीवन्त सच से कभी अलग नहीं होने दिया। अपनी रचनाओं में उन्होंने महज़ दुख का बखान नहीं किया बल्कि दुख के कारणों की जाँच-पड़ताल में भी गहराई तक गये। इस प्रकार नाटक के पात्रों का चित्रण करते हुए उन्होंने एक ओर जहाँ ईमानदार नाटककार की भूमिका निभाई, वहीं दूसरी ओर इसी सत्यनिष्ठा के चलते अन्तिम दौर के नाटकों में, यद्यपि उनकी अवधारणा मार्क्सवादी पाठ (Text) के रूप में ही की गयी थी, वह मूलभूत उद्देश्यों से काफ़ी आगे निकल आये थे। एक सत्यनिष्ठ, ईमानदार और मानवीय व्यक्ति की रचनात्मक संवेदना की यह ऊँची छलाँग ही ब्रेष्ट को एक महान कवि और नाटककार के रूप में स्थापित कर गयी।

read more