दुनिया के पैमाने पर सर्वहारा शक्तियाँ एक बार फिर बुनियादी विचारधारात्मक सवालों के रूबरू खड़ी है। अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करणों की – आर्थिक नवउपनिवेशवाद के दौर की नयी सर्वहारा क्रान्तियों की प्रगति और सफलता की बुनियादी गारण्टी इन प्रश्नों के समाधान पर ही निर्भर करती हैं कि: · सोवियत संघ, पूर्वी यूरोप के देशों और चीन आदि के देशों में पूँजीवाद की पुनर्स्थापना क्यों हुई और कब हुई · समाजवादी प्रयोगों की ऐतिहासिक उपलब्धियाँ, असफलताएँ, ग़लतियाँ और वस्तुगत सीमाएँ क्या थीं · समाजवादी समाज की प्रकृति एवं स्वरूप कैसा होता है · यदि समाजवाद वर्ग समाज से वर्गविहीन समाज के बीच का एक लम्बा संक्रमणकाल है और इस लम्बी अवधि के दौरान वर्ग (एवं ज़ाहिरा तौघ्र पर वर्ग-संघर्ष भी) मौजूद रहते हैं तो वे कौन-कौन से वर्ग होते हैं और वर्ग सम्बन्धों की प्रकृति क्या होती है · इस संक्रमणशील वर्ग समाज में राज्य की प्रकृति क्या होती है, वह किस वर्ग के हाथों में होता है यानी समाजवादी समाज में राज्य और क्रान्ति का प्रश्न किस रूप में मौजूद होता है और किस तरह से हल किया जाता है · सर्वहारा अधिनायकत्व के बारे में मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ के विचार क्या हैं, इस अवधारणा का क्रमशः विकास किस रूप मे हुआ तथा इसके व्यवहार के ऐतिहासिक अनुभव हमें क्या बताते हैं · समाजवादी समाज में कृषि और उद्योग के क्षेत्र में और समग्र रूप में उत्पादन सम्बन्धों की प्रकृति क्या होती है, उनमें बाज़ार की और बुर्जुआ अधिकारों की क्या स्थिति होती है, उनमें माल-उत्पादन की अर्थव्यवस्था किन रूपों में मौजूद रहती है, समाजवादी समाज की राजनीतिक-सांस्कृतिक अधिरचना की प्रकृति और गतिकी (डायनामिक्स) क्या होती है तथा सतत परिवर्तनशील आर्थिक मूलाधार को वह किस तरह प्रभावित करती है और उससे किन रूपों में प्रभावित होती है… आदि-आदि। read more