Author Archives: Disha Sandhaan

लोग लोहे की दीवारों में क़ैद, मगर घुटते हुए, जगते हुए…

लोग लोहे की दीवारों वाले अभेद्य दुर्ग में क़ैद तो हैं, मगर जग रहे हैं। घुट रहे हैं। सवाल यह है कि आह्वान करने वाले लोगों में लगातार उन्हें आवाज़ देने की ज़िद, संकल्प और धीरज है या नहीं! सवाल यह है कि क्या वे जनता को लौह-कारागार को तोड़ डालने की तरकीब और तरीक़ा बताने की समझ और सूझ-बूझ भी रखते हैं या नहीं! सवाल यह है कि वे इसका जोखिम उठाने के लिए और क़ीमत चुकाने के लिए तैयार हैं या नहीं! read more

भारतीय प्रगतिशील मनीषा के प्रतीक-पुरुष राहुल

आज जब सर्वग्रासी संकट से ग्रस्त हमारा समाज गहरी निराशा, गतिरोध और जड़ता के अँधेरे गर्त में पड़ा हुआ है, जहाँ पुरातनपन्थी मूल्यों-मान्यताओं और रूढ़ियों के कीड़े बिलबिला रहे हैं, तो हमें सर्वोपरि तौर पर राहुल के उग्र रूढ़िभंजक, साहसिक और आवेगमय प्रयोगधर्मा व्यक्तित्व से प्रेरणा लेने की ज़रूरत है। आज हमें राहुल की वैज्ञानिक-जीवनदृष्टि के अथक प्रचारक व्यक्तित्व से सीखने की ज़रूरत है, उनकी लोकोन्मुख तर्कपरकता से सीखने की ज़रूरत है, उनके जैसे सकर्मक इतिहास-बोध से लैस होने की ज़रूरत है और सिद्धान्त और व्यवहार में वैसी ही एकता क़ायम करने की ज़रूरत है। आज जिस नये क्रान्तिकारी पुनर्जागरण और प्रबोधन की ज़रूरत है, उसकी तैयारी करते हुए राहुल जैसे इतिहास-पुरुष का व्यक्तित्व हमारे मानस को सर्वाधिक आन्दोलित करता है। read more