लोग लोहे की दीवारों में क़ैद, मगर घुटते हुए, जगते हुए…

लोग लोहे की दीवारों वाले अभेद्य दुर्ग में क़ैद तो हैं, मगर जग रहे हैं। घुट रहे हैं। सवाल यह है कि आह्वान करने वाले लोगों में लगातार उन्हें आवाज़ देने की ज़िद, संकल्प और धीरज है या नहीं! सवाल यह है कि क्या वे जनता को लौह-कारागार को तोड़ डालने की तरकीब और तरीक़ा बताने की समझ और सूझ-बूझ भी रखते हैं या नहीं! सवाल यह है कि वे इसका जोखिम उठाने के लिए और क़ीमत चुकाने के लिए तैयार हैं या नहीं! read more