Author Archives: Disha Sandhaan
आज के समय में कम्युनिस्ट घोषणापत्र: आज भी सही, आज भी खतरनाक, आज भी नाउम्मीदों की उम्मीद
कम्युनिस्ट घोषणापत्र ने इतिहास का एक विराट दृश्यपटल मेरे सामने उपस्थित किया और इसमें न केवल अतीत का विश्लेषण था वरन् यह उस भविष्य के बारे में भी बात करता था, समाज जिस दिशा में अग्रसर है। घोषणापत्र का यह दो टूक नजरिया बेहद प्रभावशाली था। यह वाक्यांश मेरी स्मृतियों में बैठा हुआ है – ‘‘परिवार और शिक्षा के बारे में बुर्जुआ वर्ग का गला फाड़कर चिल्लाना।’’ मैं उस समय 19 वर्ष का था और मुझे यह बहुत भाया। और मार्क्स उस समय सिर्फ 29 वर्ष के थे, जब उन्होंने इसे लिखा। read more
दायित्वबोध, जनवरी-फरवरी 2000
दायित्वबोध, अक्टूबर-दिसम्बर 1999
बच्चों की सामूहिक देखभाल ने औरतों को किस तरह आजाद किया
‘बच्चों की देखभाल कौन करे’ यह प्रश्न स्त्रियों और पुरुषों के बीच एक बड़ा मुद्दा बना रहता है। कुछ स्त्रियां चाहती हैं कि उनके पति घर के कामों और बच्चों की देखभाल में और अधिक से अधिक जिम्मेदारी उठायें। इस प्रकार एक अन्तहीन संघर्ष चलता रहता है। दुनिया भर की औरतें इस स्थिति से निपटने की राह ढूंढ़ रही हैं। गरीब स्त्रियां महसूस करती हैं कि न्यूनतम मजदूरी पर उन्हें कोई काम मिलता भी है तो बच्चों की देखभाल इस नौकरी की इजाजत उन्हें नहीं देती। और बहुत सी नौजवान औरतों को तो इसके लिए अपनी मां पर निर्भर रहना पड़ता है। मध्य वर्ग की औरतें अपने बच्चों की देखभाल के लिए ऐसी आयाओं की नियुक्ति करती हैं जो ज्यादातर आप्रवासी होती हैं और बहुत कम वेतन पर बिना किसी लाभ के काम करने को विवश होती हैं। और हम ज्यादा से ज्यादा यही सुनते आ रहे हैं कि कोई स्त्री, चाहे कितना ही जरूरी काम उसके पास क्यों न हो, ‘सबसे पहले वह एक मां होती है। यह परिस्थितियां वाकई पागल बना देने वाली होती हैं। read more
How Collective Childcare Liberated Women
This division of labor in society oppresses women. It keeps many women isolated in the home where housework and childcare numb the mind and exhaust the body. And it puts a lot of restrictions on what women can do with their lives and how much they can participate in the revolutionary struggle. A woman who has to spend a large part of her life raising and taking care of children isn’t free to fully contribute to society. And until this oppressive division of labor is gotten rid of, woman cannot be liberated. read more
दायित्वबोध, जुलाई-सितम्बर 1999
माओकालीन चीन में मार्क्सवाद / जार्ज थामसन
माओ पूंजीवाद के समर्थकों और मार्क्सवाद के संशोधनकर्ताओं के विरुद्ध, जिस बात की जोरदार ढंग से हिमायत करते हैं वह मानवतावाद की भूमिका ही है जो सामाजिक विकास में अदा की जानी है – लेकिन यह उदार मानवतावाद नहीं है जो यह मानकर चलता है कि हरेक सवाल के दो पक्ष होते हैं, बल्कि यह क्रान्तिकारी मानवतवावाद है जो उत्पीड़ितों के पक्ष में खड़ा होकर, हमारे समय की महान ऐतिहासिक घटनाओं का स्वरूप निर्धारित कर रहा है। जहां कुछ लोग इस भ्रम में हैं कि गरीब देशों के आर्थिक विकास के लिए बाहर से भौतिक सहायता जरूरी है, वहीं माओ हमें बताते हैं कि देश की सम्पदा तो उसकी जनता होती है जो, एक बार साम्राज्यवादी प्रभुत्व के चंगुल से मुक्ति पा लेने के बाद, स्वयं अपनी गरीबी का अन्त कर सकती है। read more