Author Archives: Disha Sandhaan

कैसे पहुंची पेरिस कम्यून की चिंगारी चियापास की पहाड़ियों में

कम्यून के लाल झण्डे की तरह लाल कमरबन्द और लाल स्कार्फ़ पहने कम्यून की स्त्रियां बुर्जुआ हलकों में कुख्यात थीं। दुश्मन सैनिकों की बढ़त रोकने के लिए केरोसिन से लैस उनके दस्ते जगह-जगह आग लगा देते थे। जब वर्साय की सेनाओं ने पेरिस पर फि़र कब्जा कर लिया तो बड़ी तादाद में स्त्रियों को फ़ायरिंग स्क्वाड के सामने भेजा गया। शहरी गरीब वर्ग की कोई भी स्त्री टोकरी या बोतल लिए हुए दिख गयी तो उसे ‘फ़ूंक-ताप दस्ते’ की सदस्य मानकर फ़ौरन गोली मार दी जाती थी। read more

भारतीय कृषि में पूँजीवादी विकास

(1990 के बाद हुए परिवर्तनों की एक रूपरेखा) ISBN 978-81-906330-8-6 मूल्य: रु. 30.00 यह संस्करण: जनवरी, 2008 प्रकाशक: राहुल प़फाउण्डेशन 69, बाबा का पुरवा, पेपरमिल रोड, निशातगंज, लखनऊ-226 006 द्वारा प्रकाशित आवरण: रामबाबू टाइपसे¯टग: कम्प्यूटर प्रभाग, राहुल प़फाउण्डेशन मुद्रक: क्रिएटिव … read more

समाजवाद की समस्याएँ, पूँजीवादी पुनर्स्थापना और महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति

दुनिया के पैमाने पर सर्वहारा शक्तियाँ एक बार फिर बुनियादी विचारधारात्मक सवालों के रूबरू खड़ी है। अक्टूबर क्रान्ति के नये संस्करणों की – आर्थिक नवउपनिवेशवाद के दौर की नयी सर्वहारा क्रान्तियों की प्रगति और सफलता की बुनियादी गारण्टी इन प्रश्नों के समाधान पर ही निर्भर करती हैं कि: · सोवियत संघ, पूर्वी यूरोप के देशों और चीन आदि के देशों में पूँजीवाद की पुनर्स्थापना क्यों हुई और कब हुई · समाजवादी प्रयोगों की ऐतिहासिक उपलब्धियाँ, असफलताएँ, ग़लतियाँ और वस्तुगत सीमाएँ क्या थीं · समाजवादी समाज की प्रकृति एवं स्वरूप कैसा होता है · यदि समाजवाद वर्ग समाज से वर्गविहीन समाज के बीच का एक लम्बा संक्रमणकाल है और इस लम्बी अवधि के दौरान वर्ग (एवं ज़ाहिरा तौघ्र पर वर्ग-संघर्ष भी) मौजूद रहते हैं तो वे कौन-कौन से वर्ग होते हैं और वर्ग सम्बन्धों की प्रकृति क्या होती है · इस संक्रमणशील वर्ग समाज में राज्य की प्रकृति क्या होती है, वह किस वर्ग के हाथों में होता है यानी समाजवादी समाज में राज्य और क्रान्ति का प्रश्न किस रूप में मौजूद होता है और किस तरह से हल किया जाता है · सर्वहारा अधिनायकत्व के बारे में मार्क्स, एंगेल्स, लेनिन, स्तालिन और माओ के विचार क्या हैं, इस अवधारणा का क्रमशः विकास किस रूप मे हुआ तथा इसके व्यवहार के ऐतिहासिक अनुभव हमें क्या बताते हैं · समाजवादी समाज में कृषि और उद्योग के क्षेत्र में और समग्र रूप में उत्पादन सम्बन्धों की प्रकृति क्या होती है, उनमें बाज़ार की और बुर्जुआ अधिकारों की क्या स्थिति होती है, उनमें माल-उत्पादन की अर्थव्यवस्था किन रूपों में मौजूद रहती है, समाजवादी समाज की राजनीतिक-सांस्कृतिक अधिरचना की प्रकृति और गतिकी (डायनामिक्स) क्या होती है तथा सतत परिवर्तनशील आर्थिक मूलाधार को वह किस तरह प्रभावित करती है और उससे किन रूपों में प्रभावित होती है… आदि-आदि। read more

अनश्वर हैं सर्वहारा संघर्षों की अग्निशिखाएँ

सर्वहारा क्रान्ति की फ़िलहाली हार, पूँजीवादी पुनर्स्थापना, विपर्यय और गतिरोध के वर्तमान विश्व ऐतिहासिक दौर का विश्लेषण करते हुए इसमें विश्व सर्वहारा आन्दोलन की इतिहास-विकास यात्रा पर एक विहंगम दृष्टि डाली गयी है और इसके समाहार के आधार पर क्रान्तियों के भविष्य के बारे में कुछ सम्भावनाएँ, कुछ विचार प्रस्तुत किये गये हैं। इसे लिखे जाने के समय से दुनिया में बहुत से बदलाव आ चुके हैं लेकिन इसमें सर्वहारा की मुक्ति के लिए विश्व-ऐतिहासिक वर्ग महासमर के पहले चक्र का जो समाहार प्रस्तुत किया गया है और जो भविष्यवाणियाँ की गयी हैं, वे मूलतः आज भी सही हैं। वस्तुतः, आज दुनिया की परिस्थितियाँ विश्व ऐतिहासिक वर्ग महासमर के दूसरे चक्र के बारे में इसके कथनों को सही साबित कर रही हैं। हम समझते हैं कि सर्वहारा क्रान्तिकारियों और वामपन्थी बुद्धिजीवियों के साथ ही उन सबके लिए यह उल्लेखनीय और विचारोत्तेजक सामग्री है जो मार्क्सवादी विज्ञान के विकास के बारे में जानने में दिलचस्पी रखते हैं। ।

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मदर टेरेसा और उनके उत्तराधिकारियों का ‘‘मिशन’’: सेवा का सच!

यदि कोई संस्था सिर्फ अपने धंधे को चलाते रहने के लिए गरीबी जैसी अमानवीय दुरवस्था के बने रहने की कामना करती है तो उसके कार्य-कलापों को निःस्वार्थ सेवा भला कैसे कहा जा सकता है? वास्तव में दया-करुणा से पूरित हृदय वाला कोई व्यक्ति क्या यह सोच सकता है कि दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भोजन, कपड़ों, दवा-इलाज की सुविधाओं से सिर्फ इसलिए वंचित बना रहे कि सेवा का उसका धंधा चलता रहे और वह बेरोजगार न हो। read more