Author Archives: Disha Sandhaan

माओ त्से-तुङ की बारह कविताएंं

‘तैरना’ कविता इस कठिन दौर में सर्वहारा शौर्य, आशावाद और भविष्य के प्रति अडिग विश्वास को प्रकट करती है। याङत्सी महानदी को तैर कर पार करने का बिम्ब मानो उक्त कठिन दौर के वर्ग संघर्ष से जूझने और धारा के विरुद्ध तैरने का सूचक है। कवि का खुले आकाश में दूर-दूर तक देखना क्रान्तिकारी कल्पनाशीलता और दूर-दृष्टि का परिचायक है। तूफानी हवाओं और लहरों का आह्वान वर्ग-संघर्ष का आह्वान है और इन लहरों के बीच निश्चिन्त होना बीहड़ सघर्षों में जीने की क्रान्तिकारी आदत की अभिव्यक्ति है। “यूँ चीजें बहती जाती हैं अविरल गति से”-यह इतिहास की सतत् परिवर्तनशीलता के प्रति विज्ञान-सम्मत आस्था को स्वर देता है। read more

गैर-सरकारी स्वयंसेवी संगठनों और दाता एजेंसियों का असली चरित्र

यह “तीसरे क्षेत्र” की सुरक्षा कवच संबंधी गतिविधियों की एक छोटी सी. बानगी भर है। इसने पूंजीवाद के लिए काफी उपयोगी और बढ़िया काम शुरू किया है। बहरहाल, यह अलग सवाल है कि इससे इस ग्रह के आर्थिक पर्यावरणीय, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों पर मंडरा रही विनाश की महाविपदा टाली जा सकेगी या नहीं। वैसे देखने में तो ऐसा ही लग रहा है कि वर्तमान व्यवस्था का आमूल परिवर्तनवादी विकल्प ढूंढने, विकसित करने और उसे लागू करने की ऊर्जा इस तीसरे क्षेत्र के सुरक्षा-कवच द्वारा बिखरा सी. दी गयी हैं।

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बेर्टोल्ट ब्रेष्ट – दुख के कारणों की तलाश का कवि

मार्क्सवाद के प्रति ब्रेष्ट की प्रतिबद्धता ने उन्हें लिखने की गहरी आकुलता दी और साथ ही एक ऐसा सशक्त विश्व दृष्टिकोण भी दिया, जिसके ज़रिये वह दुनिया में जो कुछ घट रहा है, उसका वैज्ञानिक सर्वेक्षण-विश्लेषण साफ़-साफ़ करने में कामयाब रहे। इसी के साथ उनके भीतर एक मानवीय कवि की जो ईमानदारी और छटपटाहट थी, उसने उन्हें चरित्रों के जीवन्त सच से कभी अलग नहीं होने दिया। अपनी रचनाओं में उन्होंने महज़ दुख का बखान नहीं किया बल्कि दुख के कारणों की जाँच-पड़ताल में भी गहराई तक गये। इस प्रकार नाटक के पात्रों का चित्रण करते हुए उन्होंने एक ओर जहाँ ईमानदार नाटककार की भूमिका निभाई, वहीं दूसरी ओर इसी सत्यनिष्ठा के चलते अन्तिम दौर के नाटकों में, यद्यपि उनकी अवधारणा मार्क्सवादी पाठ (Text) के रूप में ही की गयी थी, वह मूलभूत उद्देश्यों से काफ़ी आगे निकल आये थे। एक सत्यनिष्ठ, ईमानदार और मानवीय व्यक्ति की रचनात्मक संवेदना की यह ऊँची छलाँग ही ब्रेष्ट को एक महान कवि और नाटककार के रूप में स्थापित कर गयी।

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पेरिस कम्यून की महान शिक्षाएं

पेरिस कम्यून में जनसमुदाय वास्तविक स्वामी था। कम्यून जबतक अस्तित्व में था, जनसमुदाय व्यापक पैमाने पर संगठित था और सभी अहम राजकीय मामलों पर लोग अपने-अपने संगठनों में विचार-विमर्श करते थे। प्रतिदिन क्लब-मीटिंगों में लगभग 20,000 ऐक्टिविस्ट हिस्सा लेते थे जहां वे विभिन्न छोटे-बड़े सामाजिक और राजनीतिक मसलों पर अपने प्रस्ताव या आलोचनात्मक विचार रखते थे। वे क्रान्तिकारी समाचार-पत्रें और पत्रिकाओं में लेख और पत्र लिखकर भी अपनी आकांक्षाओं और मांगों को अभिव्यक्त करते थे। जनसमुदाय का यह क्रान्तिकारी उत्साह और यह पहलकदमी कम्यून की शक्ति का स्रोत थी।

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कहां गईं स्त्रियां? – खट रही हैं भूमण्डलीय असेम्बली लाइन पर

भारत जैसे गरीब देशों की मेहनतकश स्त्रियां रोजमर्रें के आम जीवन से अनुपस्थित होती जा रही हैं। उन्हें देखना हो तो वहां चलना होगा जहां वे छोटे-छोटे कमरों में माइक्रोस्कोप पर  निगाहें गड़ाये सोने के सूक्ष्म तारों को सिलिकॉन चिप्स से जोड़ रही हैं, निर्यात के लिए सिले-सिलाए वस्त्र तैयार करने वाली फैक्टरियों में कटाई-सिलाई कर रही हैं, खिलौने तैयार कर रही हैं या फूड प्रोसेसिंग के काम में लगी हुई हैं। इसके अलावा वे बहुत कम पैसे पर स्कूलों में पढ़ा रही हैं, टाइपिंग कर रही हैं, करघे पर काम कर रही हैं, सूत कात रही हैं और पहले की तरह बदस्तूर खेतों में भी खट रही हैं। महानगरों में वे दाई-नौकरानी का भी काम कर रही हैं और ‘बार मेड’ का भी। अनुपस्थित और मौन होकर भी वे हमारे आसपास ही हैं। भूमण्डलीकरण की संजीवनी पी रहे वृद्ध पूंजीवाद के लिए शव-परिधान बुन रही हों शायद! क्या पता!

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