सोवियत संघ में समाजवादी प्रयोगों के अनुभवः इतिहास और सिद्धान्त की समस्याएँ (तीसरी किस्त)
अलग-अलग दौरों में बेतेलहाइम ने सोवियत संघ के समाजवादी प्रयोग पर जो रचनाएँ लिखी हैं, उन पर अलग-अलग किस्म के विजातीय प्रभाव स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते हैं। त्रात्स्कीपन्थ, ख्रुश्चेवी संशोधनवाद, अल्थूसरवादी उत्तर-संरचनावाद, अराजकतावादी-संघाधिपत्यवाद, कीन्सीय “मार्क्सवाद”, बुखारिनपन्थ और साथ ही उनके उत्तरवर्ती दौर की रचनाओं पर एक प्रकार के छद्म-माओवाद का प्रभाव देखा जा सकता है। लेकिन अगर चार्ल्स बेतेलहाइम के पूरे अप्रोच और उनकी पद्धति पर सम्पूर्णता में किसी चीज़ का असर है तो वह है हेगेलीय भाववाद, अधिभूतवाद, यान्त्रिकतावाद और मनोगतवाद का। दार्शनिक धरातल पर बेतेलहाइम पर भाववाद और अधिभूतवाद के असर के कारण ही उन्हें 1930 के दशक के उत्तरार्द्ध से लेकर 1980 के दशक तक कभी हम त्रात्स्कीपन्थ, ख्रुश्चेवी संशोधनवाद और कीन्सीय “मार्क्सवाद” के छोर पर खड़ा देख सकते हैं तो कभी बुखारिनपन्थ और छद्म-माओवाद के छोर पर। read more