‘कम्युनिज़्म’ का विचार या उग्रपरिवर्तनवाद के नाम पर परिवर्तन की हर परियोजना को तिलांजलि देने की सैद्धान्तिकी
‘‘कम्युनिज्म’’ की अपनी प्राक्कल्पना और विचार के नाम पर बेज्यू मार्क्सवाद की बुनियादी प्रस्थापनाओं और क्रान्तिकारी अन्तर्वस्तु को खारिज करने का काम करते हैं। वह अतीत के सभी समाजवादी प्रयोगों पर ‘‘विफलता’’, ‘‘त्रासदी’’ और ‘‘आपदा’’ का लेबल तो चस्पाँ कर देते हैं, जो कि बेज्यू के लिए आकाशवाणी-समान सत्य है, लेकिन न तो उन प्रयोगों का कोई आलोचनात्मक मूल्यांकन पेश करते हैं और न ही सामाजिक परिवर्तन का अपना कोई सकारात्मक मॉडल पेश करते हैं। वह एक ऐसे कम्युनिज्म की बात करते हैं जो मार्क्सवादी नहीं होगा। लेकिन, अकेले बेज्यू इस अनैतिहासिक, गैर-द्वन्द्वात्मक, प्रत्ययवादी सैद्धान्तिकीकरण का शिकार नहीं हैं, बल्कि उत्तर-मार्क्सवादी ‘‘रैडिकल’’ दार्शनिकों की पूरी धारा है जो मार्क्सवाद पर हमला बोल रही है। अकर्मण्यता और निष्क्रियता के इन सिद्धान्तकारों को हम दुनिया की ‘‘नयी व्याख्या’’ करनेवाले उनके ‘‘विचारों’’ के बीच ही छोड़ देते हैं, क्योंकि दुनिया को बदलने का काम अभी भी बाकी है। read more