पार्टी निर्माण और गठन के पहले नरोदवाद, ‘‘कानूनी’’ मार्क्सवाद और अर्थवाद से चले संघर्ष और पार्टी गठन के बाद मेंशेविकों और त्रात्स्कीपन्थियों से चले संघर्ष वे प्रमुख राजनीतिक संघर्ष थे, जिन्होंने एक ओर शुरुआती दौर में रूस में क्रान्तिकारी सामाजिक-जनवादी आन्दोलन के आकार और आकृति को निर्धारित किया, वहीं पार्टी गठन के बाद पार्टी के निर्माण की पूरी प्रक्रिया को निर्धारित किया। इस पूरे संघर्ष में लेनिन की भूमिका कम-से-कम 1898-99 से निर्धारक की बन चुकी थी। लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति होगा कि करीब दो से ढाई दशक तक चले इस राजनीतिक संघर्ष को महज लेनिन के योगदानों की श्रृंखला के तौर देखा जा सकता है। लेनिन के नेतृत्व में समूचे बोल्शेविक नेतृत्व ने यह संघर्ष चलाया। निश्चित तौर पर, कई मौकों पर इस नेतृत्व में लेनिन स्वयं अकेले पड़ जाते थे, लेकिन अन्ततः यह बोल्शेविक नेताओं की कोर कुल मिलाकर लेनिन की अवस्थिति को अपनाती थी और अन्य विजातीय विचारधारात्मक प्रवृत्तियों से संघर्ष में लेनिन के साथ खड़ी होती थी। कोई भी कम्युनिस्ट एकता इसी प्रकार कार्य करती है। वह किसी भी सूरत में एकाश्मी नहीं हो सकती और द्वन्द्वात्मक गति से आगे बढ़ती है। लेनिन की महानता इस पूरे राजनीतिक संघर्ष को अपनी विचारधारात्मक व राजनीतिक समझदारी और नेतृत्व में सही दिशा में आगे ले जाने में निहित थी। read more